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Thursday, August 15, 2019

वक़्त

मैं समय हूँ
मैं कल था, मैं आज हूँ
मैं कल तेरा था,
आज उसका हूँ
मगर कल फिर से तेरा होऊँगा
मैं वक़्त हूँ

मुझे ठहरना नहीं आता ,
मुझे बस बदलना ही भाता
मैं बिगाड़ता भी हूँ, मैं ही सँवारता हूँ
कल वहाँ , तो अब यहाँ
मैं निरंतर गतिमान हूँ

मैं सिखाने आता हूँ,
सीख़ गए.. तो बुरी याद बनके चला भी जाता हूँ
गर न सीखे.. तो कुछ देर और ठहर जाता हूँ!
मैं जीवन हूँ

मैं तुम हूँ , मैं मैं हूँ
मैं ही आशा , मैं ही पश्चाताप
मैं ही भगवान , मैं ही असुर
मैं ही अच्छा और सिर्फ मैं ही बुरा
मैं ही सब कुछ हूँ

मैं समय हूँ

मैं तेरा वक़्त हूँ

Monday, August 12, 2019

अधूरे ख़त


बहुत सारे अधूरे ख़त लिखे रखे हैं मेरी दराज़ में
कुछ पूरे भी हैं, आखिर में लिखा है मेरा नाम
मगर युहीं पड़े हैं, तितर-बितर, मेरी दराज़ में

कभी अपनी मंज़िल तक पहुंच नहीं सके
"TO" में तुम्हारा नाम ज़रूर है , मगर असल में हैं ये मेरे नाम
जब कह नहीं सकती थी कुछ भी, तब लिखे थे ये खत तमाम

ढेरो बातें हैं इनमे, उस लम्हे में जिया हर एहसास जर्द है
कभी बहुत नाराज़ हूँ मैं, कभी गुहार लगा रही हूँ
कभी मैं ठीक हूँ,तुम चिंता मत करना , ऐसा बता रही हूँ
कहीं कहीं तो Bold letters में , खत में ही धमका रही हूँ

एक लम्बा अरसा गुज़र चुका है
लेकिन संभाले रहूंगी फिर भी ये खत सारे
तुम भी ज़िन्दगी जैसे हो..इसीलिए ज़िन्दगी हो
तुम दोनों का मुझे कोई भरोसा नहीं
फिर दोबारा लिखने होंगे , फिर से मेहनत करनी होगी
इसीलिए यूँही रहने दूंगी
ये अधूरे ख़त , तितर-बितर , मेरी दराज़ में 

Thursday, August 1, 2019

Overcoat

एक ओवरकोट है 
जिसे रोज़ पहन के बाहर निकलती हूँ

मुस्कुराहट के रेशे हैं, अभिनय के तार 
बटन हैं बेफिक्री के और रंग सुर्ख लाल 
अपनी ही परछाईयों से बुना है इसको 
ताकि आसान हो जाये रौशनी में निकलना 
खुद सिया है मैंने इसे 
रख कर किनारे सारे रंज, मलाल

मन मे चाहे जो भी हो 
छुपा लेता है ये ओवरकोट हर बात

घर आके करीने से अलगनी से टांग देती हूं 
कहीं कोई नाज़ुक धागा उधड़ के कुछ याद न करा जाए,
कोई बेमतलब धूल लग के सुर्ख रंग फ़ीका न पड़ जाए

बेहद अज़ीज़ है मुझे 
मेरा ये ओवरकोट 
जिसे मैं रोज़ पहन के बाहर निकलती हूँ!


कई रातें जागती बितायी हैं..
उन बेफ़िक्र सोती रातों की याद में!

तेरे हाथ का तकिया और गर्माहट की चादर;
ढूंढे नही मिलता किसी और कि पनाह में..!

दिन तो मुश्किल है मगर रात और भी मुश्किल
ग़मज़दा हूँ मैं अब खुद की ही याद में

तुम्हे याद हो तो बता देना मुझे भी
कैसी लगती थी मैं सोते हुए..
सुकून से तेरे पास में?

Wednesday, May 16, 2018

Phases


People are just phases
In the longer phase called life
In the shorter span called phase
Each arrives and so do they pass
Giving you what it was here for
Taking from you what it was meant to
But the memories linger
For many phases to come up
Some are fragrant, some are not
Most are bitter but a few still sweet
But you got to understand
That ‘the’ phase has passed
The person is gone
Not far far away yet far away
And when you feel too happy
Remember,
People are phases
And this too shall pass!


Thursday, April 26, 2018

तेरे इश्क़ के मकां

तेरे इश्क़ के मकां
बनते हैं उधड़ते हैं
तू रूबरू नहीं मगर तेरे ख्याल,
रोज़ मेरे संग चलते हैं!
हमारे गुज़रे ज़माने ही अब..
मयस्सर रहा करते हैं!
इक दिन नहीं जाता,
के तेरा इश्क़ मेरी ज़िन्दगी से,
न टकराये..
अब तो ये फैसले ही,
दरमियान रहा करते हैं!
दिन साल में तब्दील हो जाते हैं..
मगर तेरे इश्क़ के मकां,
रोज़ ही, बनते हैं उधड़ते हैं!

Sunday, October 1, 2017

नीला

तुम्हे नीला रंग बहुत पसंद था न
कपड़ों से लेकर दीवारों तक
कुछ भी नीला ही चुनते थे तुम मुस्कुराने के लिए
माँ ने जब नीला कुर्ता दिलाया था
मैंने तुम्हे ऐसे बताया था
जैसे दुनिया की सबसे बड़ी चीज़ हो
यूँ ही एक एक करके
सब कुछ नीला कर दिया था तुम्हारे लिए
आज तुम नहीं हो
और तुम्हारे आने का इंतज़ार भी नहीं
मगर एक चीज़ छूट गयी तुम्हारी
नीला रंग...
आजकल सब कुछ नीला ही भाता है
कपड़ों से लेकर दीवारों तक
माँ कहती है तुझे तो गुलाबी पसंद था अब क्या हुआ
मैं क्या बताऊँ माँ को
के तुम चले गए
मगर तुम्हारा रँग मुझपर रह गया


Wednesday, May 18, 2016

Shambles

The Pink Black Hole 

The Night was deepening, 

And they were both in shambles;

Reminiscing their own pieces,

Picking them one by one,

They spoke to each other in signs; 

Told each other to read between the lines.

Exhaling a little fake laughter every now &  then,

Fearing the night, fearing the next sun!  

Longer the conversation went, harder it became to hide,

They both missed right now,

What slipped from their hands...in time! 




Sunday, May 1, 2016

चीज़ें

ये जो चीज़ें हैं न
मेरी तुम्हारी
जो इधर उधर बिखरी रहती हैं..
मेरा चश्मा, घर की duplicate ताली,
तुम्हारा wallet , गाडी की चाभी,
dressing table पे मेरे झुमके
और तुम्हारा perfume , जो तुम कभी जगह पे नहीं रखते
बाहर सूखते हम दोनों के towels
.
.
.
कितनी सारी चीज़ें,
समेट समेट के परेशां हो गयी हूँ,

आजकल नहीं दिखती तुम्हारी चीज़ें ,
मेरे सामान के नाम पे
एक छोटी डायरी होती है बस!

ये जो चीज़ें हैं न..,
मेरी तुम्हारी,

बहुत परेशां करती हैं | 

Thursday, February 25, 2016

कुछ शामें ऐसी भी


कुछ शामें हुई होंगी,

जब दिल का कुछ बोझ तूने भी हल्का किया होगा

कुछ गुनगुनाया होगा,

कुछ अरमान सा दिल से निकाला होगा;

न ज़रूरत पड़ी होगी किसी नशे की,

क्युकी इश्क़ ही बेशुमार हुआ होगा!

तूने कुछ देखा होगा , मैंने कुछ सुना होगा,

दोनों को कुछ तो एहसास  होगा.

कुछ शामें होंगी ऐसी तेरे पास भी,

जिनका ज़िक्र आज भी तू किया करता होगा















Wednesday, October 14, 2015

थोड़ी रेत लौटा आये हैं

हर बार जब जाते थे समंदर किनारे
थोड़ी रेत साथ लाते थे
यादों की, मुलाक़ातों की
कुछ धूल संग ले आते थे

इस बार जब गए थे समंदर किनारे,
थोड़ी रेत उसकी उसको,
लौटा आये हैं;
कितनी  हसीन थी पिछली ज़िन्दगी ,
वो  सारी, समंदर में छोड़ आये हैं!

किसी ने नहीं देखा  हमें ...
हम वहाँ से इस बार क्या लूट लाये हैं !
बस वो समंदर गवाह है,
हम इस बार उसका जादू साथ लाये हैं ...

जिसकी अमानत थी,
उसको वापस दे आये हैं ;
इस बार,
थोड़ी रेत लौटा आये हैं..!!




Tuesday, June 10, 2014

पुराना शेर

एक पुराना शेर याद आया 
और शेर जब पहली बार कहा था, 
वो ज़माना भी संग आया
भूली गलियों में वापिस भटकने को
अपने मन का
एक बार और मचलने का दिल हो आया
पुराने शेरों की क्या बात कह दी, 
उनसे जुड़ा हर एक अरमान याद आया!
बीते अरमानों का जो मैंने हलके से हाथ सहलाया, 
सच..
वही पुराना शेर, जो उस वक़्त यूँ ही कह दिया था,
मुझे आज याद आया!
इत्तेफाक से आज फिर कुछ ऐसा हुआ
कि दिल भर आया,
वही पुराना मौसम निकला;
आज उसने फिर से सब कुछ दोहराया
आज फिर दिल भर आया 
तो मुझे फिर,वही पुराना शेर याद आया!


Also pasting the so much talked about "पुराना शेर" here: 
"ये गम भी मुझे अज़ीज़ है, 
ये उन्ही की दी हुई चीज़ है"



Friday, May 3, 2013

इबारतें (3)


इबारतें थमीं हैं ,
आजकल,
इबादतें बदलाव पे आमादा हैं ;

मेरे हज की गलियों के नक्श 
शायद किसी पुराने संदूक में,
आराम फ़रमाते होंगे ,
मगर गलियां मुझे याद हैं; 

हर आहट समेटती ,
इन पन्नों की गिनती ख़त्म होने पे है 
मगर ये बदलती इबारतें, 
मुझे मेरे हज की गलियों में 
बार बार धकेल आती हैं;  

इबारतें अब भी थमी हैं, 
इबादतें मगर, 
रोज़ाना बदल रही हैं | 


And Ibaratein part 3 is here- after 4 months of Ibaratein 2 

A few words have become family to this series, featuring themselves in every post but the connection keeps on changing! 
I am not sure i will write other parts to "Ibaratein" series or not but am sure if I do, teh thread will be seen, strong and long! 
Read Ibaratein 1 here!! 

इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
नक्श:Map
बेबाक:Frank

Wednesday, February 13, 2013

महफूज़ लड़ियाँ


Sandook


कुछ हर्फ़ पिरोये रखे थे,
लडियां बना कर ,
अरसों से , संदूक में महफूज़ छोड़े थे

सोचा था ,
सदियाँ बीतने के बाद ,
वक़्त की थोड़ी धूल चड़ने के बाद ,
इन लड़ियों का मोल बदल जायेगा ,
शायद थोडा और बेशकीमती हो जायेगा ;


BlackPearls 
पर वक़्त हमेशा नहीं उड़ता ,
थोड़ी धूल जमी ही थी ,
कि व्याकुल हाथ उन सहेजी लड़ियों को टटोलने लगे,

पाया लडियां बिलकुल वैसी थीं ,
अब सोचती हूँ ,
कल सुनार को दे आउंगी ,
शायद अभी सहेजने का वक़्त नहीं आया है

Friday, January 25, 2013

तस्वीरों के लोग


"उन तस्वीरों को दीवार पे जगह देने का क्या फायदा ,

जिनमें  मुस्कुराते लोग अब ज़िन्दगी से रुखसत हो गए "

Tuesday, January 22, 2013

मकां


मकां कई बनते हैं 
मन में ही बनते और उधड़ते हैं,
दीवारें चुनती हैं 
और फिर भी दरवाज़े खुलते हैं 

दरवाजों तक जाने वाले 
रास्ते चलते हैं , बदलते हैं 
जाने कितने मौसम बीत जाते हैं 
पर मकां अब भी बना करते हैं 

एक दिन कोई उस मकां का 
पता पूछ बैठता है 
तो कच्ची सड़क पर पक चुके 
पैरों के निशाँ बताते हैं 

के दीवारें तो ढह गयीं 
पर रास्ते अब भी 
उन खुले दरवाज़ों तक जाते हैं!! 

Saturday, January 5, 2013

“You are what you delete”



You are what you delete --- It’s a copied thought but so true! So many times, so many words are poured on a word doc and then backspace button un-does it all! Why- may be this piece of thought doesn't wants to go public, may be this part of the person doesn’t wants to be seen, or may be this emotion just wants to stay inside and grow bigger.

Hiding away is one aspect but hiding and yet growing it inside is totally another.

Situations happen-you do certain things in a certain way in that situation and then that situation – that moment is gone, but once that moment has passed, does it happens that you think you could have done something else in this situation – you could have behaved little differently – then things might not be the way they are right now- they may have changed – they may have been better – they may have been according to you, the way you wanted them to be!!

Holding back yourself – that’s what you did-then, in that moment- you didn’t blurt out yourself and now the moment has passed away. Holding back was difficult, painful rather, but did it help? What held you- you were thinking of the eventual outcomes of “resistibility” or you realized there are some common human emotions in you like ‘ego’ – whatever it was- you haven’t done justice to yourself- at least not in that moment.

Now the moment has already passed but the urge and the desire isn’t dead yet. So, you shall wait, wait for the urge to grow bigger within you – wait till the time when you feel that holding back happened for good, wait till you feel the moment was worth it and when you get the vibes that its time- just blurt it out!

But oh!- the wait seems to have missed its worth- here’s a new discovery within yourself—the time, desire and efforts that went in doing  everything to get it back seem to be a waste- the situation doesn’t seems be deserving enough – a wrong choice or may be a wrong realization- And ‘now’ another situation is happening to you- this is called “Helplessness”!

Nothing is worse than this feeling, nothing so handicapped – when you do it all, with your heart, mind, body and soul – but still- nothing happens!

And this is the time- when you write and delete-this is the real You!


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PS:

§  Live every moment, don’t miss, don’t regret-do what you feel like and not think like doing in that moment.
§  Nothings worse than Helplessness
§  Resistibility is a bitch
§  Remember, eventually, it’s only about YOU!




Monday, December 31, 2012

पुरानी किताब

पुराने किस्सों से सराबोर 
पीले पड़  चुके पन्नो वाली उस किताब को 
मैं एक दिन यूँ ही  पलट के देख रही थी , 
हर पन्ने की सिलवट के साथ 
उस सिलवट की वजह सोच रही थी;

यादें ज्यादा थी और शब्द कम 
उस रात मैं भी न जाने क्या क्या सोच रही थी 

बहुत देर बाद 
जब यादों की नींद से जागी 
महसूस हुआ अब हकीकत में लौटना चहिये 
पन्ने पपड़ा गए थे 
मैंने किताब को किसी तरह बंद कर 
एक भारी ताले से दबा दिया 

पर उस रात बारिश हुई थी 
तेज़ हवा से ताला सरक गया था 
और 
एक अनचाहा सा पीला पन्ना 
मेरे सामने खुल गया था !!