Thursday, May 10, 2018

इन्ही बादलों में घुमड़ जाऊँ,
या इसी समंदर से लिपट जाऊँ;
संसार की साजिशें अब समझ नहीं आती
जी में आता है,
यहाँ से वापस न जाऊँ!
रंग बदलता है जीवन,
इसी समंदर के पानी जैसा ;
कहीं खुशनुमा हल्का नीला..
कहीं भयावह काला गहरा!
कभी सूरज आँख दिखाता है,
कभी यहीं पे चाँद मुस्कुराता है ;
मगर जीवन तो इस कश्ती जैसा,
अतिशय चलता जाता है..!
जी में आता है..
ये फ़लसफ़ा समझ पाऊँ!
इन्ही लहरों में सिमट जाऊँ
यहाँ से वापस न जाऊँ!


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