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असमंजस हैं बड़े,
किन धूप छांव में हम आ खड़े
शिकवे हैं या शिकवे न होने के गिले
इतने खामोश क्यूँ हैं सिलसिले...?
कब से हुए यहीं हम ठहरे,
न हम बदले न तुम बदले,
फिर भी हम असमंजस में पड़े ..;
मायूसी और मुस्कुराहटें दोनों नहीं,
बस ख़ामोशी है और कुछ नहीं,
उलझे उलझे दिन हैं सादी सादी रातें,
दोनों वही हैं मगर दोनों चुप खड़े;
असमंजस हैं बड़े...!!!
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