Friday, December 30, 2011

लव्ह्ज़- ऐ-दर्द


कोई शिरकत है दिल में


कि आज तो क़यामत है


ये दिन भी है कुछ धुंधला सा


आज फिर किसी की रुवायत है


जो दर्द हैं दिल में


वो आँखों के मोहताज हैं


कुछ कहने की चाहत


आज है किसी बंद दरवाज़े में


बरसने दो इन आँखों को




शायद कुछ तो राहत मिले


ये दर्द है बड़ा हसीं


आता है कुछ ही खुशनसीबों के खजाने में .!






Thursday, March 3, 2011

रिश्ते


एक काफिला ही तो होते हैं ये रिश्ते
आते हैं , गुज़र जाते हैं
कभी एक जगह ठहर नहीं पाते
बंजारों से , बेगाने से होते हैं ये रिश्ते
कितने अपरिचित, कितने अनजान होते हैं ये रिश्ते
कुछ पल को मिलते हैं ,
एक गर्माहट , एक मुस्कान सी देते हैं
पर समय के साथ
ये काफिले फिर उठ कर चल पड़ते हैं
कभी दिल न लगाना इनसे, कभी आस न जगाना इनसे
क्युकी आखिर,
एक काफिला ही तो होते हैं ये रिश्ते !!

Tuesday, March 1, 2011

On the verge....!!


The strings are tangled ,
And the threads now breaking
I wait to surrender,
My soul now aching .
I hold my breath,
And see the vital signs of rupturing;
Breaking inside
I still smile to this beckoning.
No voices I can hear now,
No intuitions anywhere for me;
All I try is to slowly detangle,
perhaps I can save the flouting!
On the verge I am
Holding this entire numb sea ;
I wish to crawl back
and once again see you smiling with me!!

Monday, February 28, 2011

सुरूर


नशा जब होता है , तो इक सुरूर सा छाता है 
दोस्तों की महफिलों में कोई अनजाना लुभाता है 
खुद को सँभालते हैं , पर दिल बहक बहक जाता है 
मिलती हैं जो नज़रें ,तो उन्हें छुपाया जाता है 
पढ़ लेते ही हैं वो , जिनसे कुछ कहना होता है 
खुशियों से लबरेज़ महफिलों में, दिल का कोई कोना रोता है 
कह उठते हैं जो दो लव्ज़, तो वाहवाह का समा हो जाता है 
घबरा के ये दिल , फिर 'उस' पे अटक जाता है 
सबकी नज़रें चुरा के, ये दिल फिर कुछ कहना चाहता है 
बीते दिनों की खुशनुमा यादों में, खुद को डुबोना चाहता है 
नशा जब होता है , तो इक सुरूर सा छाता है
नशे के सुरूर में ये दिल, तुमको वापिस पाना चाहता है 

 

Monday, January 3, 2011

मंज़र

दिल में ये तमन्ना उठती है 
की काश कोई ऐसा मंज़र होता ,
जहाँ न कोई फ़िक्र होती न खलिश 
बस खुशियीं से भरा अम्बर होता !
जो गम होता कोई 
तो पास एक कन्धा होता ,
जिस पर, गिर कर , गर संभला जाये 
तो उस पर कोई आक्षेप न होता 
जहाँ  सपने देखने का हौसला होता ,
जहाँ  खुशियों का सिलसिला होता ,
जहाँ नीरसता परिस्थितियों से रूठ जाया करती 
ऐसा ही सारा समां होता 
दिल में ये तमन्ना उठती है 
की काश 
कोई ऐसा मंज़र होता !!

Sunday, January 2, 2011

"MUSE"

I walk in the trail of life
But still long for the being of  my ‘muse’
I surpass the colors of love
But still wonder if I can bath in any
I yell to help but
My ‘muse ‘ is nowhere
I catch the flyers to hold on its mirage
But again my ‘muse’ is a blind escapade
I keep running through the insignias
But my ‘muse’ is only at a distance
I shall find it one day
Or I would lose the game of life!!