Monday, January 3, 2011

मंज़र

दिल में ये तमन्ना उठती है 
की काश कोई ऐसा मंज़र होता ,
जहाँ न कोई फ़िक्र होती न खलिश 
बस खुशियीं से भरा अम्बर होता !
जो गम होता कोई 
तो पास एक कन्धा होता ,
जिस पर, गिर कर , गर संभला जाये 
तो उस पर कोई आक्षेप न होता 
जहाँ  सपने देखने का हौसला होता ,
जहाँ  खुशियों का सिलसिला होता ,
जहाँ नीरसता परिस्थितियों से रूठ जाया करती 
ऐसा ही सारा समां होता 
दिल में ये तमन्ना उठती है 
की काश 
कोई ऐसा मंज़र होता !!

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