Monday, September 8, 2014

क्यों कर

क्यों कर सुख की चिंता है
क्यों कर मुस्कुराहटों की अभिलाषा है
जहाँ स्थायी- अस्थायी स्वयं अस्थिर हैं
वहां क्यों कर स्थिरता की कामना है,


जब कोई भी इस जगत में
पूर्णतयः निर्दोष नहीं
वहां क्यों एक तिल रहित चित्त की पिपासा है



विलक्षण होकर भी क्या होगा
जो होना है, अंत वही होगा
जान पाओगे सीमाओं को,
ही लांघ पाना मुनासिब होगा;
फिर क्यों कर सब कुछ जान लेने की इच्छा है


चिरंजीव सुख सिर्फ एक ढकोसला है

जानते हुए भी,
क्यों कर मुस्कुराहटों की अभिलाषा है??




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खेद सहित,
कवीषा!!