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Sunday, May 1, 2016

चीज़ें

ये जो चीज़ें हैं न
मेरी तुम्हारी
जो इधर उधर बिखरी रहती हैं..
मेरा चश्मा, घर की duplicate ताली,
तुम्हारा wallet , गाडी की चाभी,
dressing table पे मेरे झुमके
और तुम्हारा perfume , जो तुम कभी जगह पे नहीं रखते
बाहर सूखते हम दोनों के towels
.
.
.
कितनी सारी चीज़ें,
समेट समेट के परेशां हो गयी हूँ,

आजकल नहीं दिखती तुम्हारी चीज़ें ,
मेरे सामान के नाम पे
एक छोटी डायरी होती है बस!

ये जो चीज़ें हैं न..,
मेरी तुम्हारी,

बहुत परेशां करती हैं | 

Friday, April 29, 2016

क्या समझूँ ?

कुछ बाकी है हमारे बीच या सब ख़त्म समझूँ
अतना अर्सा गुज़र गया हमें "हम" हुए ,
इसका क्या मतलब समझूँ
सालों के जस्बात,
चंद महीनों में दफन हो गए,
इसे किसकी बेगैरत समझूँ;
एक बार मुझे पलट के देख तो सही,
तुम्हारी जाती हुई पीठ देख कर ही,
क्या समझूँ ?   

Wednesday, April 27, 2016

Dialogue!


"मेरे हिस्से वाला दिल का टुकड़ा संभाल के रखना"

"तेरा टुकड़ा थोड़ा नाज़ुक था न अभी
 सो सबसे ऊपर रखा है
 डर मत
 कुछ  नहीं होगा "

"नाज़ुक चीज़ें टूटने का सबसे ज़्यादा डर होता है
 इसलिए बोला"

"तभी तो सम्भाल के रखा है,
 जैसे कोई नयी जान हो"

"यूँ दिल के टुकड़े किये तो किये,
  एक उठा कर चल भी दिए"

"तुम्हारी आँखों से ओझल हुए कभी?
 इश्क़ की सहेलियां ये शिकायतें,
 उफ़्फ़ ...बिलकुल पागल हैं"  
.


.

                                       " कभी कभार दिल के कई टुकड़े करने पड़ते हैं                                                                             ताकि हर इश्क़ को थोड़ी थोड़ी जगह दी जा सके"

Tuesday, March 15, 2016

अनमनी

अनमने जस्बात हैं, अनमने ख़यालात हैं

अनमने से दिन हैं, अनमनी सी शाम है

अनमनी सी मैं हूँ, अनमने हालात हैं

असमंजस है, कश्मकश है,

उधेड़बुन है और ढेरों आघात हैं;

अनमना मन है,

और अनमनी है सारी ये ज़िन्दगी

न सुकून है, न छींट भर भी विश्वास है

है तो बस, सब कुछ अनमना

यही मन है, यही अब संसार  है!  

Monday, March 14, 2016

गाहे बगाहे



गाहे बगाहे
लोग मिला करते हैं आते जाते,
पूछ लिया करते हैं मेरा हाल बिना तसव्वुर किये
मैं भी सर हिला देती हूँ एक मुस्कान ओढ़ के ;
मगर जी नहीं करता हमेशा ये चादर पहनने का..
कभी कभार सब कुछ सच कहने को मन करता है!
चाहता है बोल दूँ ये वो नहीं जो दिखता है,
ये ऐसा बिलकुल नहीं...;

मगर हाल पूछने वाले ने भी इतना ख्याल किया होगा क्या,
यूँ ही हलके फुल्के मुझसे पूछने से पहले...
नहीं!
इसीलिए नहीं बताती,
बस लिख लेती हूँ
लिख के खुद के ही पास, रख लेती हूँ 

Monday, March 7, 2016

ये वो नहीं

तेरे ज़िक्र में मेरा ख़्याल नहीं
मेरे ख़्याल में तेरा ज़िक्र नहीं
किस मोड़ पे गए हाथों में हाथ लिए
एक दूसरे की फ़िक्र नहीं!
वक़्त नहीं,जस्बात नहीं
तू तू नहीं, मैं मैं नहीं;
ये वो दुनिया नहीं,
ये पहले जैसी ज़िन्दगी नहीं!!

Thursday, February 25, 2016

कुछ शामें ऐसी भी


कुछ शामें हुई होंगी,

जब दिल का कुछ बोझ तूने भी हल्का किया होगा

कुछ गुनगुनाया होगा,

कुछ अरमान सा दिल से निकाला होगा;

न ज़रूरत पड़ी होगी किसी नशे की,

क्युकी इश्क़ ही बेशुमार हुआ होगा!

तूने कुछ देखा होगा , मैंने कुछ सुना होगा,

दोनों को कुछ तो एहसास  होगा.

कुछ शामें होंगी ऐसी तेरे पास भी,

जिनका ज़िक्र आज भी तू किया करता होगा















Wednesday, December 30, 2015

इबारतें (6)

इबारतें बेख़ौफ़ हैं
इबादतें बदशक्ल,

मेरे हज की गलियों के नक्श
नाखून से खुरचना चाहा हो किसी ने जैसे

ज़िन्दगी मुझसे ही पलट के सवाल पूछती है
आखिर क्या सोच के किया जो किया,
पन्नों पे लिखाई भी मुश्किल हो रही है
ओस भीगे पत्ते भी कभी जलते हैं भला

इबादतें दिखने लगी हैं अब इबारतों में
बस ज़िन्दगी की हँसी सुनाई देती है


one more EMI of Ibaratein Poetry Series- 10 months in between


इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
नक्श:Map

Wednesday, December 23, 2015

लगता है सालों पुरानी बात है

तस्वीरें है कुछ मेरी तुम्हारी
अभी बस हाल फ़िलहाल की
रोज़ पलटती हूँ, हमें साथ देखने को
मगर,
लगता है सालों पुरानी बात है

लगता है जैसे अरसा गुज़र गया तुम्हें देखे हुए
कही चेहरा भूल जाऊं.. यूँ भी सोच लिया करती हूँ
तुम्हारा इंतज़ार होकर भी नहीं है
इतना लम्हा गुज़र गया तुमसे रूबरू हुए


हर दिन मानो इक साल जैसा है
बस खुद जोड़ लो कितने साल गुज़र गए;
वादे किये थे तुमने बस अभी कुछ दिन पहले
मगर,
लगता है सालों पुरानी बात है

Wednesday, October 14, 2015

थोड़ी रेत लौटा आये हैं

हर बार जब जाते थे समंदर किनारे
थोड़ी रेत साथ लाते थे
यादों की, मुलाक़ातों की
कुछ धूल संग ले आते थे

इस बार जब गए थे समंदर किनारे,
थोड़ी रेत उसकी उसको,
लौटा आये हैं;
कितनी  हसीन थी पिछली ज़िन्दगी ,
वो  सारी, समंदर में छोड़ आये हैं!

किसी ने नहीं देखा  हमें ...
हम वहाँ से इस बार क्या लूट लाये हैं !
बस वो समंदर गवाह है,
हम इस बार उसका जादू साथ लाये हैं ...

जिसकी अमानत थी,
उसको वापस दे आये हैं ;
इस बार,
थोड़ी रेत लौटा आये हैं..!!




Monday, September 14, 2015

ग़ज़लों जैसा इश्क़

काश के ग़ज़लों जैसा इश्क़ हुआ करता

तुम  मय हुआ करते मैं साकी हुआ करती

सोचती बस तुम्हे,

तुम्हारे लिए ही नज़्में लिखा करती

काश शाइर जैसा  इश्क़ हुआ करता

बस उसी के लिए जीती, उसी पे मरती

तुम गिनते नहीं कितने जाम हुए

मैं बताती नहीं हम क्यों सरेआम हुए

कितना इश्क़ होता सोचो ज़रा

गर ग़ज़लों जैसा इश्क़ हुआ करता

वाकई , इश्क़ होता!

काश के ग़ज़लों जैसा इश्क़ हुआ करता 

Wednesday, August 19, 2015

मेरा नादान इश्क़

इश्क़ शिकवे करता है
क्यों नहीं आते तुम पहले की तरह,
ख्यालों के दरवाज़ों पे दस्तक देने,
वो आबे - हयात मंज़र दिखलाने;

संजीदगी रिस रही है शायद कहीं से,
कोई महरूम खिड़की खो रही है शोरोगुल में,
कभी कभी वो मेरे पास आ बैठता है..
अपने दिल का हाल कहने..
क्यों नहीं आते तुम पहले की तरह,
मुझसे पूछता है..!

तुम्ही कहो कैसे समझाऊं इसे,
ये तो ताउम्र नादान रहता है,
कहती हूँ सब्र करो, वो आएगा;
फिर से वो आबे - हयात मंज़र दिखलाने!

मगर डरती हूँ...
इंतज़ार लम्हे से लम्बा न हो जाये,
तुम मत कहना उससे, मैंने तुमसे कहा था ;
मगर जल्दी आना.… .,
कहीं मेरा नादान इश्क़,
बड़ा न हो जाये ....!!


It was after very very long that i wrote THIS - a MY STYLE poetry - For those whose have written things like Writing could be a therapy they were not wrong - You Actually FEEL It!! It works like meditation - a nirvana!!


Friday, February 27, 2015

इबारतें (5)

इबादतें कुबूली गयी हैं कुछ,
इबारतें मगर आमादा हैं,
किस्से दर्ज़ करने पे,

मेरे हज की गलियों के नक्श,
बड़े नए नज़र आते हैं,
कच्चे रास्तों पे,
कोरी बजरी बिखेरी है शायद,

पन्ने अपनी गिनतियों में मशगूल हैं,
और इबारतें खुद को कुरेदने में,
इबादतें बेलफ़ज़ हैं,  
मगर गलियां चल रही हैं, बदल रही हैं,

इबादतें नयी उमड़ेंगी मगर,
तब इबारतें भी संजीदा होंगी,
मेरे हज की गलियों के नक्श फिर बदलेंगे,
और पन्नो की सिलवटें फिर बढ़ेंगी!!  
   

Fifth installment of my beloved IBARATEIN series is here - this time after 7 months. A lot happened in this while,  life changing decisions, those which can't be undone! But Ibaratein will go on - no matter what is going on....!!! 


इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
आमादा: Adamant 
नक्श:Map
बेलफ़ज़: Speechless 
मयस्सर :Available 

Thursday, February 26, 2015

असमंजस


@kaveeshaklicks #insta

असमंजस हैं बड़े,
किन धूप छांव में हम खड़े
शिकवे हैं या शिकवे होने के गिले
इतने खामोश क्यूँ हैं सिलसिले...?

कब से हुए यहीं हम ठहरे,
हम बदले तुम बदले,
फिर भी हम असमंजस में पड़े ..;

मायूसी और मुस्कुराहटें दोनों नहीं,
बस ख़ामोशी है और कुछ नहीं,
उलझे उलझे दिन हैं सादी सादी रातें,
दोनों वही हैं मगर दोनों चुप खड़े;

असमंजस हैं बड़े...!!!



Monday, January 5, 2015

अभी बाकी है

अश्क़ सबूत हैं,
तेरे हिस्से का इश्क अभी बाकी है;
रश्क़ जो किये थे तुझसे,
उनका हिसाब अभी बाकी है;
ज़िन्दगी पड़ी है बहुत,
ये साथ यहीं तक बस हुआ...,
शायद यहाँ से आगे भी हो....;
थोड़ी आस अभी बाकी है!!


Because A lot happens and then Poetry happens!!


----And juts the next day , ABHI BAAKI HAI gets featured in this.....Pasting a screenshot!! :D



Wednesday, December 31, 2014

Ending 2014!


It’s the last day of this year 2014 today, right now as I sit in office desperately waiting to go home, I thought might as well put my pen down for a while after posting these last two creations of 2014! 

Though I wrote them down a day back or two, when I post this right now, I have newer emotions attached to it. It’s strange how poetry can be so flexible to provide meaning to different situations in life and sound different every time you read it depending on the state you are in right now!



1st Oil Painting: My Moon & the Sun
जब दो रूहों के मुस्तक़बिल ,
एक लम्हे में मयस्सर होते हैं
ईमान बदलते हैं
मगर जज़्बात वही रहते हैं

मुकम्मल हों यूँ ख्वाहिशें
इबादत यही रहेगी हमेशा
थोड़ी रोज़ाना 
कश्मकश के आयाम जानिब होते हैं


Glossary:

मुस्तक़बिल – Fate, fortunes
मयस्सर- Available
ईमान- Intentions
जज़्बात- Emotions
मुकम्मल- Successful
ख्वाहिशें- Desires
इबादत- Prayer
जानिब- Face to face
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


ख़लिश बसे  अश्क़ों में 
रश्क़ हो लफ़्ज़ों में,
जब भी ज़िन्दगी मामूली सा भी मौका दे 
भींच लो दोनों हाथों से ,
क्योंकि, ख़लिश खता है
और इस खता का मुआवज़ा मुनासिब नहीं!  

Glossary:

ख़लिश - Regrets
रश्क़- Complaint
खता- Mistake
मुआवज़ा- Compensation

मुनासिब- Possible 


At the end, pasting my personal wishes to all those who kept reading and motivating me!! 

Oil on Paperboard- "Two of us" 


Have a great productive and arty year all of you! 

More Love, More celebrations, More Poetry, More Colors, More Emotions and therefore More Love...!!! 



- Kaveesha

Monday, September 8, 2014

क्यों कर

क्यों कर सुख की चिंता है
क्यों कर मुस्कुराहटों की अभिलाषा है
जहाँ स्थायी- अस्थायी स्वयं अस्थिर हैं
वहां क्यों कर स्थिरता की कामना है,


जब कोई भी इस जगत में
पूर्णतयः निर्दोष नहीं
वहां क्यों एक तिल रहित चित्त की पिपासा है



विलक्षण होकर भी क्या होगा
जो होना है, अंत वही होगा
जान पाओगे सीमाओं को,
ही लांघ पाना मुनासिब होगा;
फिर क्यों कर सब कुछ जान लेने की इच्छा है


चिरंजीव सुख सिर्फ एक ढकोसला है

जानते हुए भी,
क्यों कर मुस्कुराहटों की अभिलाषा है??




------------------–-----------------------

खेद सहित,
कवीषा!!

Thursday, July 17, 2014

इबारतें (4)

इबारतें रोज़ दफन होती हैं
एक के बाद एक
हर रोज़ नयी इबादतें मयस्सर होती हैं

मेरे हज की गलियों के नक्श
कुछ पहचाने से नहीं जाते
और गलियां,
उनका तो नामो निशान भी मुश्किल है

पन्ने जोड़ने पड़ते हैं
बेशुमार सिलवटें बढ़ती जाती हैं
मगर ये डूबती उभरती इबारतें,
मुझे मेरे हज की गलियों की
याद दिलाती हैं

इबारतें दफन होती जाती हैं
मगर इबादतें हर रोज़ नित नए
फन उठाती हैं!!


Ibaratein part 4 is here- yet again it took me almost an year to continue the series!
Writing this series, keeping same words and rhythm in all the four creations till date - i also realized that even the same words can say a thousand different meanings, they can explain different situations, different turmoils, dilemmas and also different people. I am the only lover who is constant in all these but my love has changed - and you can judge it right well if you go through all four! 



इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
नक्श:Map
मयस्सर :Available 

Wednesday, July 9, 2014

अज़ार

insta @kaveeshaklicks
दरवाज़े कई तरह के देखे होंगे
कुछ पुरानी लकड़ी के,
कुछ संगेमरमर के,
कुछ खुले, कुछ सांकल लगे हुए,
कुछ बंद भी होते हैं
खटखटाये जाने के इंतज़ार में,
और कुछ होते हैं अज़ार;

आने जाने वालों की,
निपट खबर से परे,
न खुद की सुध, न ही चेष्टा,
मानो उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता,
क्युकी न तो वो बंद हैं, न ही खुले,
सांकल गर  हो भी तो वह भी सिर्फ दिखावे की,


काश मन भी ऐसा ही होता,
न मौसम से रोज़ सड़ती लकड़ी का,
न अपनी शोहरत के दिन याद करता संगेमरमर का,
न भीतर घुसने वालों का मोह,
न बाहर जातों का अफ़सोस,
बस यूँ ही होता,
अज़ार!

     

Friday, July 4, 2014

क्या है इश्क़

अरसे हो गए जब दुनिया को ऐलान करते
की हाँ इश्क़ में हैं हम,
आज सोचते हैं,
कमबख्त ये इश्क़ आखिर है क्या

कमसिन उम्र में,
जब पेट में तितलियाँ उड़ा करती थीं
उनके ज़िक्र के नाम से,
सोचते थे इश्क़ जो है यही है ;

जो थोड़ा होश संभाला
और जो खुद के गुनाहों का दौर आया
उन्होंने जो गुनाह नज़रअंदाज़ कर दिए,
सोचते थे इश्क़ जो है यही है;

जब इश्क़ भी इश्क़ के गुनाहों में संग गुनहगार हो गया,
और दोनों ने मिल के उसे दुनिया से छुपाया,
तब सोचा हो न हो, इश्क़ यही होगा;

मगर आज,
जब इश्क़ की आखिरी
मंज़िल पाने का मुकाम आया;
तब सोचते हैं,
कहीं ये महज़ सालों की आदत तो नहीं?

क्युकी तितलियाँ तो अब,
दूर दूर तक नहीं;
और गुनाह छुपाने का हुनर भी
खूब सीख गए हैं;

आज जब अरसे हो गए
उस ऐलान को ,
तब सोचते हैं,
कमबख्त ये इश्क़ आखिर है क्या!!