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Monday, March 14, 2016

गाहे बगाहे



गाहे बगाहे
लोग मिला करते हैं आते जाते,
पूछ लिया करते हैं मेरा हाल बिना तसव्वुर किये
मैं भी सर हिला देती हूँ एक मुस्कान ओढ़ के ;
मगर जी नहीं करता हमेशा ये चादर पहनने का..
कभी कभार सब कुछ सच कहने को मन करता है!
चाहता है बोल दूँ ये वो नहीं जो दिखता है,
ये ऐसा बिलकुल नहीं...;

मगर हाल पूछने वाले ने भी इतना ख्याल किया होगा क्या,
यूँ ही हलके फुल्के मुझसे पूछने से पहले...
नहीं!
इसीलिए नहीं बताती,
बस लिख लेती हूँ
लिख के खुद के ही पास, रख लेती हूँ