Tuesday, May 5, 2020

मैं तेनु फ़िर मिलांगी


मैं तेनु फ़िर मिलांगी
कभी एक सवाल के जवाब में उभरांगी
कभी एक खयाल की तस्वीर में उतरांगी
मैं यहीं कहीं हर कही
हर जगह तेनु मिलांगी

तेरे दिल के किसी सूखे एहसास में
या कभी तेरी रब से अरदास में
मैं तेनु फ़िर मिलांगी

तू जिन्ना मर्ज़ी छुपा तेरा मुझ से वास्ता नहीं
पर मेरे कोल रब दस्या,
तू मेरा ही रहना होर किसी दा होना नहीं 

तू झूठ बोल हज़ार, दिखा लाख तकरार
पर मेरा तुझसे मन मिलया, 
तो तक़दीर दा फ़िर किस्सा नही

मैं तो तेनु फ़िर मिलांगी

©kaveesha




यादाश्त बहुत अच्छी नहीं है मेरी, बादाम रोज़ भिगोये जाते हैं
न ही बहुत ज़्यादा किसी लेख़क, कवि की तारीफ़ करी
लेकिन कुछ नज़्में ऐसी छाप छोड़ती हैं ,कि कभी यूँ याद आजाएंगी
जैसे उनको पढ़े बिना आज खाना गले से नहीं उतरेगा


अमृता प्रीतम जी की सर्वप्रसिद्ध कविता "मैं तेनु फ़िर मिलांगी" का extension लिखा है
लिखा भी नहीं बस कलम खुद ब खुद चली | मुझे पंजाबी आती भी नहीं , पढ़ते समय वह अटपटापन आप सब पकड़ लेंगे लेकिन ये लिखते समय किसी पूर्वजन्म की अनुभूति थी शायद!

अमृता जी की यह कविता उनके अंत समय में उन्होंने लिखी, जब लौ बस टिमटिमा भर रही थी - रूमी ने भी तो यही कहा था "“Out beyond ideas of wrongdoing and right doing,there is a field. I’ll meet you there."

तो क्या अंत में सारे कवि और प्रेमी एक ही सा सोचते हैं ?

क्या सब यही कहते हैं "फिर मिलेंगे"?? ?


Pasting below Amrita Ji's Epic Poem

मैं तैनू फ़िर मिलांगी
कित्थे ? किस तरह पता नई
शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के
तेरे केनवास ते उतरांगी
जा खोरे तेरे केनवास दे उत्ते
इक रह्स्म्यी लकीर बण के
खामोश तैनू तक्दी रवांगी
जा खोरे सूरज दी लौ बण के
तेरे रंगा विच घुलांगी
जा रंगा दिया बाहवां विच बैठ के
तेरे केनवास नु वलांगी
पता नही किस तरह कित्थे
पर तेनु जरुर मिलांगी
जा खोरे इक चश्मा बनी होवांगी
ते जिवें झर्नियाँ दा पानी उड्दा
मैं पानी दियां बूंदा
तेरे पिंडे ते मलांगी
ते इक ठंडक जेहि बण के
तेरी छाती दे नाल लगांगी
मैं होर कुच्छ नही जानदी
पर इणा जानदी हां
कि वक्त जो वी करेगा
एक जनम मेरे नाल तुरेगा
एह जिस्म मुक्दा है
ता सब कुछ मूक जांदा हैं
पर चेतना दे धागे
कायनती कण हुन्दे ने
मैं ओना कणा नु चुगांगी
ते तेनु फ़िर मिलांगी


Friday, May 1, 2020

तुम



तुम न बिल्कुल
हिमालय की ऊंची वाली चोटी जैसे हो
बादलों से घिरे
तुम्हे नही दिखता कब से
तुम्हें ही जीतने में प्रयासरत हूँ मैं
बंजारों सी ज़िन्दगी जी रही हूँ
तुमने कभी तूफान दिए
कभी नीचे पटक दिया
अब तो तुम ठीक से दिखते भी नही
फिर भी प्रयासरत हूँ मैं 

सुनो


सुनो 
कभी कभी तरस भी आता है तुमपे 
प्रेम के युग को बीतते देख रहे हो 
और नितांत शून्य साधे बैठे हो? 
शायद तुम्हारे लिए वक़्त ठहर गया है
या शायद,
गुज़र गया है
क्या बुद्ध हो गये हो? 

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सुनो,
ये जो इतना झिझकते हो न तुम 
कही गलती से भी प्रेम छलक न जाये 
गंभीर नपी तुली बातों से कहीं 
एक सिरा भी ढीला होके छूट न जाये
न पता लग जाये मुझे 
अब भी कहीं गरमाईश है बाकी
न पूछ लूँ पलट के मैं 
क्या इश्क़ है आज भी..., ज़रा भी?
बस वही!

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सुनो,
ये जो हर चीज़ छोड़ देने की आदत है ना तुम्हारी
बुरा लगा क्या? ठीक, अब से बोलूंगा ही नही
रिश्ते में कुछ अधूरा लगा क्या? ठीक, अब से रिश्ता रखूंगा ही नहीं
ये एक दिन सब कुछ छुड़वा देगी तुमसे
तुम्हे तुमसे भी
याद रखना
बस वही!

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सुनो
पता है तुम्हे अच्छा नही लगा
पर मुझे लगता है
थोड़ा सह लो??

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सुनो,
ये जो तुम अनजान बनने का नाटक करते हो न
जो मैं सच समझती हूँ जब द्रवित होती हूँ
बस वही!

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सुनो,
मुझे धीरे धीरे समझ आ रहा है
कि तुमको शायद कभी समझ नही आएगा
या शायद समझ के भी न समझने का नाटक करोगे
मगर मुझे वो भी समझ आ जायेगा
समझे?
बस वही!

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सुनो
जब उखड़ते हो कि मैँ कुछ लिख नही रही, पढ़ नही रही, कैनवस पर कुछ नया उकेर नही रही
और मैँ कितना कुछ महसूस कर जाती हूँ ये सब सुन के ...
बस वही!

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संकलन

Add caption
उसने कहा
मैं दुआ करूँगा तुम्हारे लिए
मैंने कहा,
दुआ में मांगना के
मेरा दिल जुड़ जाए

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तुममें और कुछ नही था पाने को
प्यार भी जो था, सारा मेरा ही था

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चलो एक एक ऊन मिलके सुलझाएँ ?
शायद एक नया स्वेटर बुन जाए
थोड़ी गर्माहट दे जाए

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तुममे सबकुछ अदभुत
इतना के मानो अलौकिक
मानो झूठ, इतना अदभुत
इतना अलौकिक, 
मगर फिर भी सच 


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विरासत लिखते समय
अपनी कविताओं की डायरी तुम्हे नहीं दूंगी 
यही मेरा एकलौता 
रूठना रहेगा तुमसे 

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अगर मैं लड़का होती
तो प्रेमिका की हर ज़ुल्फ़ को शब्दों में कैद कर देती 
गूंथ देती रिबन उसमे अपनी कल्पनाओं के 
तारीफ यूँ करती 
कि वो अपने चाहने वालों से 
मेरी सी ही अपेक्षा करती 
अगर मैं लड़का होती 
तो मैं प्रेम करती या नहीं करती 
लेकिन उसे नाव में बिठाके 
ओझल नहीं होती


वादा करो
ख़त लिखोगे
हमेशा
और नीचे
'हमेशा तुम्हारा'
के साथ
अपना अटपटा बच्चों वाला
Sign करोगे
वादा करो
ख़त लिखोगे
हमेशा


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कोफ्त होती है खुद पे, तुमसे बात करके
कोफ्त होती है तुमपे, जब तुम मुझसे बात नही करते

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तुम्हारी भी गली सुनसान रहती है अब
लगता है इश्क़ उसे भी छोड़ गया

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अपने ही ग़म काफी हैं मशगूल रहने के लिए
तेरे भी  बाँटने चले तो मशहूर न हो  जाएँ


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बासी सी बरसातें
कोरे रूखे राज़
रोज़मर्रा सी धूप
और वही पुरानी बात


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सच है ताउम्र तलाश की इन्तेहाँ नहीं होती
मगर ख़ूबसूरत से सफ़र की कुछ यादें साथ रहें
तो ज़रा सांस आती है