Tuesday, December 18, 2018

Untitled नज़्म -ऐ -ज़िन्दगी

कुछ नज़्मों के न
title नहीं हुआ करते,
क्युकी जब वो पैदा हुई
तब खुद ब खुद
खुद को कहती चली गयी..
समझ में भी नहीं आ पाया
और नज़्म बन के खड़ी हो गयी!
उसी तरह जैसे
खुद ब खुद हालात बनते जाते हैं,
और एक नयी ही ज़िन्दगी
सामने आकर खड़ी हो जाती है!
वो भी ऐसी
जो कभी सोची भी नहीं थी ..
उसी तरह ,
जैसे वो नज़्म बन जाती है ,
जिनके title नहीं हुआ करते ..!! 
दूर इतना भी न होना
के पास होने की
आदत ख़त्म हो जाये

न इश्क़ आये
न इश्क़ का खयाल..

ये ज़ख्म भी वक़्त के साथ
कहीं भर न जाये ..!

मुझे याद है

मेरी ग़र्म हथेलियों में 
जब तेरी ठंडी लकीरें समाती थीं 
मुझे याद है, 
कुछ देर हो जाये तो पसीज सी जाती थीं 
दूसरे हाथ से झट से थाम लेते थे 
और धीरे से जींस में हाथ पोछ लिया करते थे 
वक़्त के साथ, छूट गए हाथ 
जो थामे थे कभी,हमेशा के लिए 
अब समझ नहीं आता, हथेली गर्म है या नहीं 
तेरी ठंडक से ही तो, इनमें जान आती थी

Thursday, May 24, 2018

मुँह का स्वाद

मुँह का स्वाद, कुछ बिगड़ा हुआ सा है
जैसे किसी ने तार चटा दिया हो
दिल की कड़वाहट, तालु से भी लगती है क्या भला..
जीवन की इस घडी को,
जैसे किसी ने खाने में मिला दिया हो!

बहुत कोशिश की ये स्वाद लोप हो जाये;
कभी मीठा बनाया, कभी कैरी फ़ाकी;
जाने कितने लीटर पानी भी डाला..
मगर ये अजीब सा स्वाद,
जैसे जाने का नाम ही नहीं लेता!

चाशनी जो पागी थी..
उस पर अब मक्खियों का अस्थायी निवास है,
और कैरी भी..
कुछ कुछ काली पड़ने लगी है;
मगर ये मुआ मुँह का स्वाद,
सुधरने का नाम ही नहीं लेता!

तुम्हें कुछ टोटका मालूम हो तो बताना
मुझे तो लगता है..
मैंने गलती से ज़िन्दगी चख़ ली है! 

Wednesday, May 16, 2018

Phases


People are just phases
In the longer phase called life
In the shorter span called phase
Each arrives and so do they pass
Giving you what it was here for
Taking from you what it was meant to
But the memories linger
For many phases to come up
Some are fragrant, some are not
Most are bitter but a few still sweet
But you got to understand
That ‘the’ phase has passed
The person is gone
Not far far away yet far away
And when you feel too happy
Remember,
People are phases
And this too shall pass!


Thursday, May 10, 2018

इन्ही बादलों में घुमड़ जाऊँ,
या इसी समंदर से लिपट जाऊँ;
संसार की साजिशें अब समझ नहीं आती
जी में आता है,
यहाँ से वापस न जाऊँ!
रंग बदलता है जीवन,
इसी समंदर के पानी जैसा ;
कहीं खुशनुमा हल्का नीला..
कहीं भयावह काला गहरा!
कभी सूरज आँख दिखाता है,
कभी यहीं पे चाँद मुस्कुराता है ;
मगर जीवन तो इस कश्ती जैसा,
अतिशय चलता जाता है..!
जी में आता है..
ये फ़लसफ़ा समझ पाऊँ!
इन्ही लहरों में सिमट जाऊँ
यहाँ से वापस न जाऊँ!


#oneweekthreecountries #voyageroftheseascruise #indianocean #may2018 

Thursday, April 26, 2018

तेरे इश्क़ के मकां

तेरे इश्क़ के मकां
बनते हैं उधड़ते हैं
तू रूबरू नहीं मगर तेरे ख्याल,
रोज़ मेरे संग चलते हैं!
हमारे गुज़रे ज़माने ही अब..
मयस्सर रहा करते हैं!
इक दिन नहीं जाता,
के तेरा इश्क़ मेरी ज़िन्दगी से,
न टकराये..
अब तो ये फैसले ही,
दरमियान रहा करते हैं!
दिन साल में तब्दील हो जाते हैं..
मगर तेरे इश्क़ के मकां,
रोज़ ही, बनते हैं उधड़ते हैं!

Tuesday, February 13, 2018

तुम

बदलते अक्स का जाना पहचाना ख्वाब हो तुम
न साथी न सहारे, बस अधूरी चाह हो तुम
हम तो रह गए भरम में
कि तुझको भी मेरी आस है
के ये दुनिया जो कहती है
हमारे बीच बस वही इक बात है
क्यों गुलज़ार खिलाये, जो हैं अब सिर्फ धूप खाते
क्यों मंज़र वो दिखलाये ,जो अब बस याद आते
मैंने सोचा था. तुम मिलोगे मुझे
हमेशा भले एहसास में
क्यों ऐसे बाँध लगाए ,ये तो सहे न जाते
न साथी न सहारे, अनसुनी आह हो तुम!
बदलते अक्स का जाना पहचाना ख्वाब हो तुम


"सुना है ख्वाबों के लोग, ख्वाबों में ही रह जाते हैं
मरासिम के लम्हे सिर्फ रूबरू ही जिए जाते हैं "




Thursday, February 8, 2018

इक बार



मेरे तसव्वुफ़ में
बस इक तेरा ही सबब रहता है
के तसव्वुर हो तेरा,
इसी खयालात का हर लम्स रहता है

न पाने की ख्वाहिश,
न जीतने की आरज़ू
बस दीदार करूँ तेरे बदले अक्स का इक बार
बस ये ही फलसफा रहता है!

फेर लेना तू नज़रें ..इक बार रूबरू होके
इस पूरे ज़लज़ले के बाद,
एक मुकम्मल रुखसती का तो...
हक़ बनता है!

Tuesday, January 23, 2018

किस तरह

किस तरह ये रात बीते
इस रात से जुड़े जस्बात बीतें
मदहोशी के बावजूद गर होश में रहना पड़े
तो किस तरह ये रात बीते
छुपाने जैसा कुछ नहीं
मगर फिर भी लगे छुपाने जैसे
ये कैसे सवालों में दिन बीतें
ये किस तरह हम ज़िन्दगी है जीते
सब कुछ मान कर भी
हर कुछ ज़ाहिर नहीं कर सकते
क्यों ऐसे बंधे हुए अलफ़ाज़ कहते
ये कैसे अंदाज़ ज़िन्दगी की
किस तरह ये लम्बी रात बीते 

Wednesday, January 17, 2018

तू ज़िंदगी

तब चाहत थी माझी की
अब चाहत है किनारे की
किस रफ़्तार से बदलती है तू ज़िंदगी
क्या तुम भी हो गयी इन लहरों सी?
ये तो रुकने का नाम नहीं लेती
और तुम मुझे रुकने नहीं देती!
शिकवा नहीं इसे साझेदारी समझना
मुझे आदत है अब तुम्हारी इन हरकतों की.
तुम युहीं परेशां रहोगी इस समन्दर सी
मैं भी गिला करुँगी कभी कभी;
लेकिन तुम्ही से ऊब कर,
फिर फिर आया करुँगी..
तुम्हारे ही करीब!!