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Thursday, February 8, 2018

इक बार



मेरे तसव्वुफ़ में
बस इक तेरा ही सबब रहता है
के तसव्वुर हो तेरा,
इसी खयालात का हर लम्स रहता है

न पाने की ख्वाहिश,
न जीतने की आरज़ू
बस दीदार करूँ तेरे बदले अक्स का इक बार
बस ये ही फलसफा रहता है!

फेर लेना तू नज़रें ..इक बार रूबरू होके
इस पूरे ज़लज़ले के बाद,
एक मुकम्मल रुखसती का तो...
हक़ बनता है!

Friday, July 4, 2014

क्या है इश्क़

अरसे हो गए जब दुनिया को ऐलान करते
की हाँ इश्क़ में हैं हम,
आज सोचते हैं,
कमबख्त ये इश्क़ आखिर है क्या

कमसिन उम्र में,
जब पेट में तितलियाँ उड़ा करती थीं
उनके ज़िक्र के नाम से,
सोचते थे इश्क़ जो है यही है ;

जो थोड़ा होश संभाला
और जो खुद के गुनाहों का दौर आया
उन्होंने जो गुनाह नज़रअंदाज़ कर दिए,
सोचते थे इश्क़ जो है यही है;

जब इश्क़ भी इश्क़ के गुनाहों में संग गुनहगार हो गया,
और दोनों ने मिल के उसे दुनिया से छुपाया,
तब सोचा हो न हो, इश्क़ यही होगा;

मगर आज,
जब इश्क़ की आखिरी
मंज़िल पाने का मुकाम आया;
तब सोचते हैं,
कहीं ये महज़ सालों की आदत तो नहीं?

क्युकी तितलियाँ तो अब,
दूर दूर तक नहीं;
और गुनाह छुपाने का हुनर भी
खूब सीख गए हैं;

आज जब अरसे हो गए
उस ऐलान को ,
तब सोचते हैं,
कमबख्त ये इश्क़ आखिर है क्या!!