Tuesday, December 18, 2018

Untitled नज़्म -ऐ -ज़िन्दगी

कुछ नज़्मों के न
title नहीं हुआ करते,
क्युकी जब वो पैदा हुई
तब खुद ब खुद
खुद को कहती चली गयी..
समझ में भी नहीं आ पाया
और नज़्म बन के खड़ी हो गयी!
उसी तरह जैसे
खुद ब खुद हालात बनते जाते हैं,
और एक नयी ही ज़िन्दगी
सामने आकर खड़ी हो जाती है!
वो भी ऐसी
जो कभी सोची भी नहीं थी ..
उसी तरह ,
जैसे वो नज़्म बन जाती है ,
जिनके title नहीं हुआ करते ..!! 

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