Friday, February 27, 2015

इबारतें (5)

इबादतें कुबूली गयी हैं कुछ,
इबारतें मगर आमादा हैं,
किस्से दर्ज़ करने पे,

मेरे हज की गलियों के नक्श,
बड़े नए नज़र आते हैं,
कच्चे रास्तों पे,
कोरी बजरी बिखेरी है शायद,

पन्ने अपनी गिनतियों में मशगूल हैं,
और इबारतें खुद को कुरेदने में,
इबादतें बेलफ़ज़ हैं,  
मगर गलियां चल रही हैं, बदल रही हैं,

इबादतें नयी उमड़ेंगी मगर,
तब इबारतें भी संजीदा होंगी,
मेरे हज की गलियों के नक्श फिर बदलेंगे,
और पन्नो की सिलवटें फिर बढ़ेंगी!!  
   

Fifth installment of my beloved IBARATEIN series is here - this time after 7 months. A lot happened in this while,  life changing decisions, those which can't be undone! But Ibaratein will go on - no matter what is going on....!!! 


इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
आमादा: Adamant 
नक्श:Map
बेलफ़ज़: Speechless 
मयस्सर :Available 

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