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Friday, April 23, 2021

स्वेटर

खुद को पिरो दिया तुझमे इतना

की हर धागे के खीचने से सिसकी निकलती है 

जी करता है एक बार मे उधेड़ दूँ ये पूरा स्वेटर

वापस एक ऊन का बेमतलब का गोला बना दूँ

जो अधूरा सही मगर संभाल के रखा जाता हो 

मगर उंगलियां मानो अकड़ जाती हों 

इस खयाल भर से...

शायद तुझे और रंगों की चाहत है 

मिलके उनमें, और फबेगा तू 

नया डिज़ाइन नया नमूना 

पल में बिखर के फिर नया बनेगा तू 

तो क्या करूँ 

खुद के धागे खींच के निकाल दूँ?

या रहने दूँ, यूँही थोड़ा पुराना थोड़ा अपना सा

धो सूखा के करीने से संदूक में सहेज लूँ 

की अगले बरस फिर सर्दियों में 

तेरी याद आएगी

Monday, August 12, 2019

लम्बी रात

जब रात अँधेरी छायी थी, जब कोसों तक तन्हाई थी
जब शोर में दबी रुलाई थी , अश्कों ने महफ़िल सजाई थी
मैं चलते चलते रूकती थी और सोते सोते जगती थी
किस्मत से रुस्वाई थी पर याद तुम्हारी आयी थी

Thursday, May 10, 2018

इन्ही बादलों में घुमड़ जाऊँ,
या इसी समंदर से लिपट जाऊँ;
संसार की साजिशें अब समझ नहीं आती
जी में आता है,
यहाँ से वापस न जाऊँ!
रंग बदलता है जीवन,
इसी समंदर के पानी जैसा ;
कहीं खुशनुमा हल्का नीला..
कहीं भयावह काला गहरा!
कभी सूरज आँख दिखाता है,
कभी यहीं पे चाँद मुस्कुराता है ;
मगर जीवन तो इस कश्ती जैसा,
अतिशय चलता जाता है..!
जी में आता है..
ये फ़लसफ़ा समझ पाऊँ!
इन्ही लहरों में सिमट जाऊँ
यहाँ से वापस न जाऊँ!


#oneweekthreecountries #voyageroftheseascruise #indianocean #may2018 

Tuesday, February 13, 2018

तुम

बदलते अक्स का जाना पहचाना ख्वाब हो तुम
न साथी न सहारे, बस अधूरी चाह हो तुम
हम तो रह गए भरम में
कि तुझको भी मेरी आस है
के ये दुनिया जो कहती है
हमारे बीच बस वही इक बात है
क्यों गुलज़ार खिलाये, जो हैं अब सिर्फ धूप खाते
क्यों मंज़र वो दिखलाये ,जो अब बस याद आते
मैंने सोचा था. तुम मिलोगे मुझे
हमेशा भले एहसास में
क्यों ऐसे बाँध लगाए ,ये तो सहे न जाते
न साथी न सहारे, अनसुनी आह हो तुम!
बदलते अक्स का जाना पहचाना ख्वाब हो तुम


"सुना है ख्वाबों के लोग, ख्वाबों में ही रह जाते हैं
मरासिम के लम्हे सिर्फ रूबरू ही जिए जाते हैं "




Thursday, April 20, 2017

ज़माने हुए

Florida Lake Eola




ज़माने हुए तुझसे रूबरू हुए
तेरी रूह को मिले अरसे हुए
यूँ तो मिला करते हैं हर रोज़
मगर 'तुझ' से मुखातिब हुए कई लम्हे हुए

मुख्तसर सी ज़िन्दगी है
बेहद मुख्तसर अपनी कढ़ी
कश्मकश में क्यों हैं बीतती
अपने फ़साने कहे अरसे हुए

सात समुंदरों की ये दूरी
आसान लगती है सात कदमों से
'तुझ' से मिले इतने अरसे हुए
कब हम, 'हम' से, में और तुम हुए



FlORIDA DIARY, USA, 12:30AM, LONE HOTEL MIDNIGHT 

Friday, April 29, 2016

क्या समझूँ ?

कुछ बाकी है हमारे बीच या सब ख़त्म समझूँ
अतना अर्सा गुज़र गया हमें "हम" हुए ,
इसका क्या मतलब समझूँ
सालों के जस्बात,
चंद महीनों में दफन हो गए,
इसे किसकी बेगैरत समझूँ;
एक बार मुझे पलट के देख तो सही,
तुम्हारी जाती हुई पीठ देख कर ही,
क्या समझूँ ?   

Monday, March 14, 2016

गाहे बगाहे



गाहे बगाहे
लोग मिला करते हैं आते जाते,
पूछ लिया करते हैं मेरा हाल बिना तसव्वुर किये
मैं भी सर हिला देती हूँ एक मुस्कान ओढ़ के ;
मगर जी नहीं करता हमेशा ये चादर पहनने का..
कभी कभार सब कुछ सच कहने को मन करता है!
चाहता है बोल दूँ ये वो नहीं जो दिखता है,
ये ऐसा बिलकुल नहीं...;

मगर हाल पूछने वाले ने भी इतना ख्याल किया होगा क्या,
यूँ ही हलके फुल्के मुझसे पूछने से पहले...
नहीं!
इसीलिए नहीं बताती,
बस लिख लेती हूँ
लिख के खुद के ही पास, रख लेती हूँ 

Wednesday, October 14, 2015

थोड़ी रेत लौटा आये हैं

हर बार जब जाते थे समंदर किनारे
थोड़ी रेत साथ लाते थे
यादों की, मुलाक़ातों की
कुछ धूल संग ले आते थे

इस बार जब गए थे समंदर किनारे,
थोड़ी रेत उसकी उसको,
लौटा आये हैं;
कितनी  हसीन थी पिछली ज़िन्दगी ,
वो  सारी, समंदर में छोड़ आये हैं!

किसी ने नहीं देखा  हमें ...
हम वहाँ से इस बार क्या लूट लाये हैं !
बस वो समंदर गवाह है,
हम इस बार उसका जादू साथ लाये हैं ...

जिसकी अमानत थी,
उसको वापस दे आये हैं ;
इस बार,
थोड़ी रेत लौटा आये हैं..!!




Monday, September 14, 2015

ग़ज़लों जैसा इश्क़

काश के ग़ज़लों जैसा इश्क़ हुआ करता

तुम  मय हुआ करते मैं साकी हुआ करती

सोचती बस तुम्हे,

तुम्हारे लिए ही नज़्में लिखा करती

काश शाइर जैसा  इश्क़ हुआ करता

बस उसी के लिए जीती, उसी पे मरती

तुम गिनते नहीं कितने जाम हुए

मैं बताती नहीं हम क्यों सरेआम हुए

कितना इश्क़ होता सोचो ज़रा

गर ग़ज़लों जैसा इश्क़ हुआ करता

वाकई , इश्क़ होता!

काश के ग़ज़लों जैसा इश्क़ हुआ करता 

Wednesday, August 19, 2015

मेरा नादान इश्क़

इश्क़ शिकवे करता है
क्यों नहीं आते तुम पहले की तरह,
ख्यालों के दरवाज़ों पे दस्तक देने,
वो आबे - हयात मंज़र दिखलाने;

संजीदगी रिस रही है शायद कहीं से,
कोई महरूम खिड़की खो रही है शोरोगुल में,
कभी कभी वो मेरे पास आ बैठता है..
अपने दिल का हाल कहने..
क्यों नहीं आते तुम पहले की तरह,
मुझसे पूछता है..!

तुम्ही कहो कैसे समझाऊं इसे,
ये तो ताउम्र नादान रहता है,
कहती हूँ सब्र करो, वो आएगा;
फिर से वो आबे - हयात मंज़र दिखलाने!

मगर डरती हूँ...
इंतज़ार लम्हे से लम्बा न हो जाये,
तुम मत कहना उससे, मैंने तुमसे कहा था ;
मगर जल्दी आना.… .,
कहीं मेरा नादान इश्क़,
बड़ा न हो जाये ....!!


It was after very very long that i wrote THIS - a MY STYLE poetry - For those whose have written things like Writing could be a therapy they were not wrong - You Actually FEEL It!! It works like meditation - a nirvana!!


Thursday, February 26, 2015

असमंजस


@kaveeshaklicks #insta

असमंजस हैं बड़े,
किन धूप छांव में हम खड़े
शिकवे हैं या शिकवे होने के गिले
इतने खामोश क्यूँ हैं सिलसिले...?

कब से हुए यहीं हम ठहरे,
हम बदले तुम बदले,
फिर भी हम असमंजस में पड़े ..;

मायूसी और मुस्कुराहटें दोनों नहीं,
बस ख़ामोशी है और कुछ नहीं,
उलझे उलझे दिन हैं सादी सादी रातें,
दोनों वही हैं मगर दोनों चुप खड़े;

असमंजस हैं बड़े...!!!



Monday, January 5, 2015

अभी बाकी है

अश्क़ सबूत हैं,
तेरे हिस्से का इश्क अभी बाकी है;
रश्क़ जो किये थे तुझसे,
उनका हिसाब अभी बाकी है;
ज़िन्दगी पड़ी है बहुत,
ये साथ यहीं तक बस हुआ...,
शायद यहाँ से आगे भी हो....;
थोड़ी आस अभी बाकी है!!


Because A lot happens and then Poetry happens!!


----And juts the next day , ABHI BAAKI HAI gets featured in this.....Pasting a screenshot!! :D



Monday, September 8, 2014

क्यों कर

क्यों कर सुख की चिंता है
क्यों कर मुस्कुराहटों की अभिलाषा है
जहाँ स्थायी- अस्थायी स्वयं अस्थिर हैं
वहां क्यों कर स्थिरता की कामना है,


जब कोई भी इस जगत में
पूर्णतयः निर्दोष नहीं
वहां क्यों एक तिल रहित चित्त की पिपासा है



विलक्षण होकर भी क्या होगा
जो होना है, अंत वही होगा
जान पाओगे सीमाओं को,
ही लांघ पाना मुनासिब होगा;
फिर क्यों कर सब कुछ जान लेने की इच्छा है


चिरंजीव सुख सिर्फ एक ढकोसला है

जानते हुए भी,
क्यों कर मुस्कुराहटों की अभिलाषा है??




------------------–-----------------------

खेद सहित,
कवीषा!!

Friday, June 6, 2014

वो जगहें


वो जगहें हम जहाँ से गुज़रे थे कभी
अब दोबारा जब रूबरू होंगी तो शायद वो होंगी
लोग अलग होंगे माहौल अलग होगा
शिर्कतें अलग होंगी और  शायद साथी भी अलग
तो दोबारा उन रास्तों को उस नज़र से देखना ही नहीं
गर देखा तो उम्मीद वही होगी
पर मंज़र अलग होगा

Wednesday, October 16, 2013

उथल पुथल

जानते हो,

मन की उथल पुथल किसे कहते हैं ?

जब दूर से आती अज़ान की आवाज़ भी बगल के कमरे से ही आती लगे,

शांत ठंडी बिखरी रेत भी खुद की गर्मी से पिघलती सी लगे

और बेहद सन्नाटे से उठने वाली सूँ भी कानो से चिपकती सी लगे

मगर दिमाग हांफ रहा हो ...,

के इतने ख्यालों को समेटते समेटते , सांस फूल रही हो जैसे ;

और बिन साथी के भी बिस्तर पर ढेरों सिलवटें पड़ गयी हो जैसे

के बेफिक्री से भरे पूरे शहर में , एक कमरा फ़िक्र ने किराए पे लिया हो जैसे

उथल पुथल ,

उसे कहते हैं !

Friday, May 3, 2013

इबारतें (3)


इबारतें थमीं हैं ,
आजकल,
इबादतें बदलाव पे आमादा हैं ;

मेरे हज की गलियों के नक्श 
शायद किसी पुराने संदूक में,
आराम फ़रमाते होंगे ,
मगर गलियां मुझे याद हैं; 

हर आहट समेटती ,
इन पन्नों की गिनती ख़त्म होने पे है 
मगर ये बदलती इबारतें, 
मुझे मेरे हज की गलियों में 
बार बार धकेल आती हैं;  

इबारतें अब भी थमी हैं, 
इबादतें मगर, 
रोज़ाना बदल रही हैं | 


And Ibaratein part 3 is here- after 4 months of Ibaratein 2 

A few words have become family to this series, featuring themselves in every post but the connection keeps on changing! 
I am not sure i will write other parts to "Ibaratein" series or not but am sure if I do, teh thread will be seen, strong and long! 
Read Ibaratein 1 here!! 

इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
नक्श:Map
बेबाक:Frank