इबारतें थमीं हैं ,
आजकल,
इबादतें बदलाव पे आमादा हैं ;
मेरे हज की गलियों के नक्श
शायद किसी पुराने संदूक में,
आराम फ़रमाते होंगे ,
मगर गलियां मुझे याद हैं;
हर आहट समेटती ,
इन पन्नों की गिनती ख़त्म होने पे है
मगर ये बदलती इबारतें,
मुझे मेरे हज की गलियों में
बार बार धकेल आती हैं;
इबारतें अब भी थमी हैं,
इबादतें मगर,
रोज़ाना बदल रही हैं |
And Ibaratein part 3 is here- after 4 months of Ibaratein 2
A few words have become family to this series, featuring themselves in every post but the connection keeps on changing!
I am not sure i will write other parts to "Ibaratein" series or not but am sure if I do, teh thread will be seen, strong and long!
Read Ibaratein 1 here!!
इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
नक्श:Map
बेबाक:Frank
इबादतें: Prayers
नक्श:Map
बेबाक:Frank
No comments:
Post a Comment