Friday, May 3, 2013

इबारतें (3)


इबारतें थमीं हैं ,
आजकल,
इबादतें बदलाव पे आमादा हैं ;

मेरे हज की गलियों के नक्श 
शायद किसी पुराने संदूक में,
आराम फ़रमाते होंगे ,
मगर गलियां मुझे याद हैं; 

हर आहट समेटती ,
इन पन्नों की गिनती ख़त्म होने पे है 
मगर ये बदलती इबारतें, 
मुझे मेरे हज की गलियों में 
बार बार धकेल आती हैं;  

इबारतें अब भी थमी हैं, 
इबादतें मगर, 
रोज़ाना बदल रही हैं | 


And Ibaratein part 3 is here- after 4 months of Ibaratein 2 

A few words have become family to this series, featuring themselves in every post but the connection keeps on changing! 
I am not sure i will write other parts to "Ibaratein" series or not but am sure if I do, teh thread will be seen, strong and long! 
Read Ibaratein 1 here!! 

इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
नक्श:Map
बेबाक:Frank

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