जानते हो,
मन की उथल पुथल किसे कहते हैं ?
जब दूर से आती अज़ान की आवाज़ भी बगल के कमरे से ही आती लगे,
शांत ठंडी बिखरी रेत भी खुद की गर्मी से पिघलती सी लगे
और बेहद सन्नाटे से उठने वाली सूँ भी कानो से चिपकती सी लगे
मगर दिमाग हांफ रहा हो ...,
के इतने ख्यालों को समेटते समेटते , सांस फूल रही हो जैसे ;
और बिन साथी के भी बिस्तर पर ढेरों सिलवटें पड़ गयी हो जैसे
के बेफिक्री से भरे पूरे शहर में , एक कमरा फ़िक्र ने किराए पे लिया हो जैसे
उथल पुथल ,
उसे कहते हैं !
मन की उथल पुथल किसे कहते हैं ?
जब दूर से आती अज़ान की आवाज़ भी बगल के कमरे से ही आती लगे,
शांत ठंडी बिखरी रेत भी खुद की गर्मी से पिघलती सी लगे
और बेहद सन्नाटे से उठने वाली सूँ भी कानो से चिपकती सी लगे
मगर दिमाग हांफ रहा हो ...,
के इतने ख्यालों को समेटते समेटते , सांस फूल रही हो जैसे ;
और बिन साथी के भी बिस्तर पर ढेरों सिलवटें पड़ गयी हो जैसे
के बेफिक्री से भरे पूरे शहर में , एक कमरा फ़िक्र ने किराए पे लिया हो जैसे
उथल पुथल ,
उसे कहते हैं !
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