Wednesday, August 19, 2015

मेरा नादान इश्क़

इश्क़ शिकवे करता है
क्यों नहीं आते तुम पहले की तरह,
ख्यालों के दरवाज़ों पे दस्तक देने,
वो आबे - हयात मंज़र दिखलाने;

संजीदगी रिस रही है शायद कहीं से,
कोई महरूम खिड़की खो रही है शोरोगुल में,
कभी कभी वो मेरे पास आ बैठता है..
अपने दिल का हाल कहने..
क्यों नहीं आते तुम पहले की तरह,
मुझसे पूछता है..!

तुम्ही कहो कैसे समझाऊं इसे,
ये तो ताउम्र नादान रहता है,
कहती हूँ सब्र करो, वो आएगा;
फिर से वो आबे - हयात मंज़र दिखलाने!

मगर डरती हूँ...
इंतज़ार लम्हे से लम्बा न हो जाये,
तुम मत कहना उससे, मैंने तुमसे कहा था ;
मगर जल्दी आना.… .,
कहीं मेरा नादान इश्क़,
बड़ा न हो जाये ....!!


It was after very very long that i wrote THIS - a MY STYLE poetry - For those whose have written things like Writing could be a therapy they were not wrong - You Actually FEEL It!! It works like meditation - a nirvana!!


No comments:

Post a Comment