Tuesday, February 13, 2018

तुम

बदलते अक्स का जाना पहचाना ख्वाब हो तुम
न साथी न सहारे, बस अधूरी चाह हो तुम
हम तो रह गए भरम में
कि तुझको भी मेरी आस है
के ये दुनिया जो कहती है
हमारे बीच बस वही इक बात है
क्यों गुलज़ार खिलाये, जो हैं अब सिर्फ धूप खाते
क्यों मंज़र वो दिखलाये ,जो अब बस याद आते
मैंने सोचा था. तुम मिलोगे मुझे
हमेशा भले एहसास में
क्यों ऐसे बाँध लगाए ,ये तो सहे न जाते
न साथी न सहारे, अनसुनी आह हो तुम!
बदलते अक्स का जाना पहचाना ख्वाब हो तुम


"सुना है ख्वाबों के लोग, ख्वाबों में ही रह जाते हैं
मरासिम के लम्हे सिर्फ रूबरू ही जिए जाते हैं "




No comments:

Post a Comment