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Tuesday, December 18, 2018

मुझे याद है

मेरी ग़र्म हथेलियों में 
जब तेरी ठंडी लकीरें समाती थीं 
मुझे याद है, 
कुछ देर हो जाये तो पसीज सी जाती थीं 
दूसरे हाथ से झट से थाम लेते थे 
और धीरे से जींस में हाथ पोछ लिया करते थे 
वक़्त के साथ, छूट गए हाथ 
जो थामे थे कभी,हमेशा के लिए 
अब समझ नहीं आता, हथेली गर्म है या नहीं 
तेरी ठंडक से ही तो, इनमें जान आती थी

Wednesday, July 12, 2017

खिड़की

Somewhere in Kolad, Maharashtra #kaveeshaklicks
मेरी सामने वाली खिड़की से, रात की ख़ामोशी में
खिलखिलाहटें सुनाई आती हैं
कुछ कोरी चिट्ठियां रहती हैं वहां
जीवन की स्याही से अब तक अनछुई
तभी तो खिलखिलाती हैं
के आवाज़ यहाँ तक आती है
रात की ख़ामोशी में
मेरी खिड़की भी शायद
वहीँ से दिल बहलाती है
खुद तो देखती है हर रोज़
जीवन की स्याही इस ओर फैलते हुए
झेल जाती है हर बार, आक्रोश में जो उसके द्वार पटके गए
कई बार तो पूरी रात गुज़र जाती है,
मेरी खिड़की कहाँ सो पाती है...!
हर रात जैसे ऐसी रात भी गुज़र जाती है
रात की ख़ामोशी, सबकुछ मौन कर जाती है
जब भी थोड़ा सुकून पाती है
मेरी खिड़की सामने वाली खिड़की की तरफ
टकटकी लगाए पाए जाती है
उन कोरी चिट्ठियों से, खुद  पे बिखरी स्याही मिटाती है
मेरी खिड़की, सामने वाली खिड़की से ,
शायद थोड़ा रश्क़ भी खाती है! 

Wednesday, June 15, 2016

Solo Show

Real wars are fought alone,

Honest tears trickled behind closed doors,

Mirrors gazed longer when lonely,

Perpetual peace earned in solace,

Lyrics absorbed than music in abandonment,

Poetry free flows only in solitude

Love associated more with absence than presence,

And real happiness comes only when truly yourself!