Thursday, July 17, 2014

इबारतें (4)

इबारतें रोज़ दफन होती हैं
एक के बाद एक
हर रोज़ नयी इबादतें मयस्सर होती हैं

मेरे हज की गलियों के नक्श
कुछ पहचाने से नहीं जाते
और गलियां,
उनका तो नामो निशान भी मुश्किल है

पन्ने जोड़ने पड़ते हैं
बेशुमार सिलवटें बढ़ती जाती हैं
मगर ये डूबती उभरती इबारतें,
मुझे मेरे हज की गलियों की
याद दिलाती हैं

इबारतें दफन होती जाती हैं
मगर इबादतें हर रोज़ नित नए
फन उठाती हैं!!


Ibaratein part 4 is here- yet again it took me almost an year to continue the series!
Writing this series, keeping same words and rhythm in all the four creations till date - i also realized that even the same words can say a thousand different meanings, they can explain different situations, different turmoils, dilemmas and also different people. I am the only lover who is constant in all these but my love has changed - and you can judge it right well if you go through all four! 



इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
नक्श:Map
मयस्सर :Available 

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