इबारतें बेख़ौफ़ हैं
इबादतें बदशक्ल,
मेरे हज की गलियों के नक्श
नाखून से खुरचना चाहा हो किसी ने जैसे
ज़िन्दगी मुझसे ही पलट के सवाल पूछती है
आखिर क्या सोच के किया जो किया,
पन्नों पे लिखाई भी मुश्किल हो रही है
ओस भीगे पत्ते भी कभी जलते हैं भला
इबादतें दिखने लगी हैं अब इबारतों में
बस ज़िन्दगी की हँसी सुनाई देती है
one more EMI of Ibaratein Poetry Series- 10 months in between
इबादतें बदशक्ल,
मेरे हज की गलियों के नक्श
नाखून से खुरचना चाहा हो किसी ने जैसे
ज़िन्दगी मुझसे ही पलट के सवाल पूछती है
आखिर क्या सोच के किया जो किया,
पन्नों पे लिखाई भी मुश्किल हो रही है
ओस भीगे पत्ते भी कभी जलते हैं भला
इबादतें दिखने लगी हैं अब इबारतों में
बस ज़िन्दगी की हँसी सुनाई देती है
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इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
इबादतें: Prayers
नक्श:Map
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