एक ओवरकोट है
जिसे रोज़ पहन के बाहर निकलती हूँ
मुस्कुराहट के रेशे हैं, अभिनय के तार
बटन हैं बेफिक्री के और रंग सुर्ख लाल
अपनी ही परछाईयों से बुना है इसको
ताकि आसान हो जाये रौशनी में निकलना
खुद सिया है मैंने इसे
रख कर किनारे सारे रंज, मलाल
मन मे चाहे जो भी हो
छुपा लेता है ये ओवरकोट हर बात
घर आके करीने से अलगनी से टांग देती हूं
कहीं कोई नाज़ुक धागा उधड़ के कुछ याद न करा जाए,
कोई बेमतलब धूल लग के सुर्ख रंग फ़ीका न पड़ जाए
बेहद अज़ीज़ है मुझे
मेरा ये ओवरकोट
जिसे मैं रोज़ पहन के बाहर निकलती हूँ!
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