पुराने किस्सों से सराबोर
पीले पड़ चुके पन्नो वाली उस किताब को
मैं एक दिन यूँ ही पलट के देख रही थी ,
हर पन्ने की सिलवट के साथ
उस सिलवट की वजह सोच रही थी;
यादें ज्यादा थी और शब्द कम
उस रात मैं भी न जाने क्या क्या सोच रही थी
बहुत देर बाद
जब यादों की नींद से जागी
महसूस हुआ अब हकीकत में लौटना चहिये
पन्ने पपड़ा गए थे
मैंने किताब को किसी तरह बंद कर
एक भारी ताले से दबा दिया
पर उस रात बारिश हुई थी
तेज़ हवा से ताला सरक गया था
और
एक अनचाहा सा पीला पन्ना
मेरे सामने खुल गया था !!
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