Friday, May 1, 2020

सुनो


सुनो 
कभी कभी तरस भी आता है तुमपे 
प्रेम के युग को बीतते देख रहे हो 
और नितांत शून्य साधे बैठे हो? 
शायद तुम्हारे लिए वक़्त ठहर गया है
या शायद,
गुज़र गया है
क्या बुद्ध हो गये हो? 

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सुनो,
ये जो इतना झिझकते हो न तुम 
कही गलती से भी प्रेम छलक न जाये 
गंभीर नपी तुली बातों से कहीं 
एक सिरा भी ढीला होके छूट न जाये
न पता लग जाये मुझे 
अब भी कहीं गरमाईश है बाकी
न पूछ लूँ पलट के मैं 
क्या इश्क़ है आज भी..., ज़रा भी?
बस वही!

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सुनो,
ये जो हर चीज़ छोड़ देने की आदत है ना तुम्हारी
बुरा लगा क्या? ठीक, अब से बोलूंगा ही नही
रिश्ते में कुछ अधूरा लगा क्या? ठीक, अब से रिश्ता रखूंगा ही नहीं
ये एक दिन सब कुछ छुड़वा देगी तुमसे
तुम्हे तुमसे भी
याद रखना
बस वही!

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सुनो
पता है तुम्हे अच्छा नही लगा
पर मुझे लगता है
थोड़ा सह लो??

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सुनो,
ये जो तुम अनजान बनने का नाटक करते हो न
जो मैं सच समझती हूँ जब द्रवित होती हूँ
बस वही!

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सुनो,
मुझे धीरे धीरे समझ आ रहा है
कि तुमको शायद कभी समझ नही आएगा
या शायद समझ के भी न समझने का नाटक करोगे
मगर मुझे वो भी समझ आ जायेगा
समझे?
बस वही!

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सुनो
जब उखड़ते हो कि मैँ कुछ लिख नही रही, पढ़ नही रही, कैनवस पर कुछ नया उकेर नही रही
और मैँ कितना कुछ महसूस कर जाती हूँ ये सब सुन के ...
बस वही!

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संकलन

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उसने कहा
मैं दुआ करूँगा तुम्हारे लिए
मैंने कहा,
दुआ में मांगना के
मेरा दिल जुड़ जाए

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तुममें और कुछ नही था पाने को
प्यार भी जो था, सारा मेरा ही था

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चलो एक एक ऊन मिलके सुलझाएँ ?
शायद एक नया स्वेटर बुन जाए
थोड़ी गर्माहट दे जाए

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तुममे सबकुछ अदभुत
इतना के मानो अलौकिक
मानो झूठ, इतना अदभुत
इतना अलौकिक, 
मगर फिर भी सच 


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विरासत लिखते समय
अपनी कविताओं की डायरी तुम्हे नहीं दूंगी 
यही मेरा एकलौता 
रूठना रहेगा तुमसे 

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अगर मैं लड़का होती
तो प्रेमिका की हर ज़ुल्फ़ को शब्दों में कैद कर देती 
गूंथ देती रिबन उसमे अपनी कल्पनाओं के 
तारीफ यूँ करती 
कि वो अपने चाहने वालों से 
मेरी सी ही अपेक्षा करती 
अगर मैं लड़का होती 
तो मैं प्रेम करती या नहीं करती 
लेकिन उसे नाव में बिठाके 
ओझल नहीं होती


वादा करो
ख़त लिखोगे
हमेशा
और नीचे
'हमेशा तुम्हारा'
के साथ
अपना अटपटा बच्चों वाला
Sign करोगे
वादा करो
ख़त लिखोगे
हमेशा


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कोफ्त होती है खुद पे, तुमसे बात करके
कोफ्त होती है तुमपे, जब तुम मुझसे बात नही करते

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तुम्हारी भी गली सुनसान रहती है अब
लगता है इश्क़ उसे भी छोड़ गया

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अपने ही ग़म काफी हैं मशगूल रहने के लिए
तेरे भी  बाँटने चले तो मशहूर न हो  जाएँ


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बासी सी बरसातें
कोरे रूखे राज़
रोज़मर्रा सी धूप
और वही पुरानी बात


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सच है ताउम्र तलाश की इन्तेहाँ नहीं होती
मगर ख़ूबसूरत से सफ़र की कुछ यादें साथ रहें
तो ज़रा सांस आती है

Thursday, August 15, 2019

वक़्त

मैं समय हूँ
मैं कल था, मैं आज हूँ
मैं कल तेरा था,
आज उसका हूँ
मगर कल फिर से तेरा होऊँगा
मैं वक़्त हूँ

मुझे ठहरना नहीं आता ,
मुझे बस बदलना ही भाता
मैं बिगाड़ता भी हूँ, मैं ही सँवारता हूँ
कल वहाँ , तो अब यहाँ
मैं निरंतर गतिमान हूँ

मैं सिखाने आता हूँ,
सीख़ गए.. तो बुरी याद बनके चला भी जाता हूँ
गर न सीखे.. तो कुछ देर और ठहर जाता हूँ!
मैं जीवन हूँ

मैं तुम हूँ , मैं मैं हूँ
मैं ही आशा , मैं ही पश्चाताप
मैं ही भगवान , मैं ही असुर
मैं ही अच्छा और सिर्फ मैं ही बुरा
मैं ही सब कुछ हूँ

मैं समय हूँ

मैं तेरा वक़्त हूँ

Monday, August 12, 2019

लम्बी रात

जब रात अँधेरी छायी थी, जब कोसों तक तन्हाई थी
जब शोर में दबी रुलाई थी , अश्कों ने महफ़िल सजाई थी
मैं चलते चलते रूकती थी और सोते सोते जगती थी
किस्मत से रुस्वाई थी पर याद तुम्हारी आयी थी

हालात और हालत

सुर्ख नज़रें बता रही हैं , तेरी ये सहर भी शमा सी रही
धुआं उठते देखा बस हमने , हरियल एक पल में बंजर हुई
हसरतों से जोड़ी एक एक पाई , छन से बिखरी पोटली हुई
सुर्ख नज़रें बता रही हैं, तू क्या से क्या हो गयी 

ख्वाहिशों का कसूर

ख्वाहिशों की ख़्वाहिश होना भी अब बेमतलब सा लगता है
तेरा भी कसूर है, ये कहना भी अब कसूर सा लगता है



अधूरे ख़त


बहुत सारे अधूरे ख़त लिखे रखे हैं मेरी दराज़ में
कुछ पूरे भी हैं, आखिर में लिखा है मेरा नाम
मगर युहीं पड़े हैं, तितर-बितर, मेरी दराज़ में

कभी अपनी मंज़िल तक पहुंच नहीं सके
"TO" में तुम्हारा नाम ज़रूर है , मगर असल में हैं ये मेरे नाम
जब कह नहीं सकती थी कुछ भी, तब लिखे थे ये खत तमाम

ढेरो बातें हैं इनमे, उस लम्हे में जिया हर एहसास जर्द है
कभी बहुत नाराज़ हूँ मैं, कभी गुहार लगा रही हूँ
कभी मैं ठीक हूँ,तुम चिंता मत करना , ऐसा बता रही हूँ
कहीं कहीं तो Bold letters में , खत में ही धमका रही हूँ

एक लम्बा अरसा गुज़र चुका है
लेकिन संभाले रहूंगी फिर भी ये खत सारे
तुम भी ज़िन्दगी जैसे हो..इसीलिए ज़िन्दगी हो
तुम दोनों का मुझे कोई भरोसा नहीं
फिर दोबारा लिखने होंगे , फिर से मेहनत करनी होगी
इसीलिए यूँही रहने दूंगी
ये अधूरे ख़त , तितर-बितर , मेरी दराज़ में 

Thursday, August 1, 2019

Overcoat

एक ओवरकोट है 
जिसे रोज़ पहन के बाहर निकलती हूँ

मुस्कुराहट के रेशे हैं, अभिनय के तार 
बटन हैं बेफिक्री के और रंग सुर्ख लाल 
अपनी ही परछाईयों से बुना है इसको 
ताकि आसान हो जाये रौशनी में निकलना 
खुद सिया है मैंने इसे 
रख कर किनारे सारे रंज, मलाल

मन मे चाहे जो भी हो 
छुपा लेता है ये ओवरकोट हर बात

घर आके करीने से अलगनी से टांग देती हूं 
कहीं कोई नाज़ुक धागा उधड़ के कुछ याद न करा जाए,
कोई बेमतलब धूल लग के सुर्ख रंग फ़ीका न पड़ जाए

बेहद अज़ीज़ है मुझे 
मेरा ये ओवरकोट 
जिसे मैं रोज़ पहन के बाहर निकलती हूँ!


कई रातें जागती बितायी हैं..
उन बेफ़िक्र सोती रातों की याद में!

तेरे हाथ का तकिया और गर्माहट की चादर;
ढूंढे नही मिलता किसी और कि पनाह में..!

दिन तो मुश्किल है मगर रात और भी मुश्किल
ग़मज़दा हूँ मैं अब खुद की ही याद में

तुम्हे याद हो तो बता देना मुझे भी
कैसी लगती थी मैं सोते हुए..
सुकून से तेरे पास में?