जब मन पहले से
भीग रहा हो एहसास में
और ऊपर से बरसात
हो जाये इस इत्तेफाक में
आँखें ढूंढे कोई छाँव ,
सर छुपाने के सरफ़राज़ में
और ढ़ेरों कोशिशों बाद मिले
छितरी पत्तियों वाला एक अधनंगा पेड़
जो खुद ही जैसे पनाह चाहता हो
किसी मांगे हुए लिबास में,
फिर क्या उम्मीद और क्या प्यास,
एहसास भीग गए अब तो बरसात में
इत्तेफाक गल गए
आज इस मांगे हुए, पुराने लिबास में !!
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