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मंजिलें तो वैसे भी तुम्हारी हैं
साथ रहना मुनासिब नहीं ,
हाथ थाम के चलना,
उस में भी क्या शिकायत है
क्यूँ खामखा की दूरियां हैं
क्या अब भी कुछ छुपा हुआ दरमियाँ है
ये साथ ही है , जो कुछ भी है
कहने को मेरा अपना
जो आगे होना है,
वो तो अभी से बेगाना है
कहने दो ना जिसे जो कहना है
जो मेरा है ,
वो तो वैसे भी तुम्हारा है