कुछ लिखा था ख़ास, उस रात इक पन्ने में
जब साथ तेरा नहीं सिर्फ तकदीर था,
जब मुद्दा तेरा सबसे हसीं था ,
ढूढती हूँ उसे बेतरतीब , सब कुछ बरबस उलट पलट के
जाने कहाँ रख दिया ,
जो ज़िक्र किया था तेरा उन लव्जों में
घडी तो रूकती नहीं, बेशर्म हो भागती जाती है
पल जो मुट्ठी में भींच लिया, बस आह उसी की रह जाती है
आज याद जब उस पल की आई
जब तेरी फ़िक्र, मेरी ज़मीन थी
परेशान हूँ मैं अब भी
जाने कहाँ रख दिया ,
जो एहसास अब नहीं मिलता
औरों में ||
Good but can be more simple so that readers can relate it more eventually can breath in the depth.
ReplyDeleteI luvd dis lyn "breath in the depth". For sure! :)
Deletegehraiyon me kho na jana...
ReplyDeleteshayad karwato me ghul gaya ho wo panna kahi..
aahoon me dhund lena unhe.. ;)