किस्मत ग़र बिका करती दुकानों में, 
तो सोचो कीमत क्या आंकी जाती 
ख्वाहिश तो सब करते थोड़ी थोड़ी खरीदने की ,
पर हैसियत फिर आड़े आजाया  करती; 
किस्मत की कीमत भी फिर, 
शायद किस्मत जैसी ही हो जाती 
दाम चुकाने के लिए 
फिर थोड़ी किस्मत की दुआ की जाती ;
फख्र करें इसके बदले 
थोडा सुकून हासिल हो जाता मुफ्त में 
तब दुआएं क़ुबूल हुआ करती 
कीमत और किस्मत काश बेगैरत होती !
