बीती रात भीगी थी कुछ उम्मीदों के सैलाब में ;
आज की शाम भी कुछ नम ही गुज़री उन्ही उम्मीदों के ख्याल में
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महफूज़ करना इन लम्हों को बेशक़ ये भागते से नज़र आएंगे
भर लेना किसी खाली शीशी में कुछ अंश तो कम से कम तेरे संग रह जायेंगे
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इश्क महफूज़ किसका हुआ है आज तक जो तेरा ही होगा,
इसका एक जुर्म ही यही है कि बस ये ठहरता नहीं है
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