Friday, July 19, 2013

तीन एहसास



बीती रात भीगी थी कुछ उम्मीदों के सैलाब में ;

आज की शाम भी कुछ नम ही गुज़री उन्ही उम्मीदों के ख्याल में 


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महफूज़ करना इन लम्हों को बेशक़ ये भागते से नज़र आएंगे 

भर लेना किसी खाली शीशी में कुछ अंश तो कम से कम तेरे संग रह जायेंगे 


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इश्क महफूज़ किसका हुआ है आज तक जो तेरा ही होगा, 

इसका एक जुर्म ही यही है कि बस ये ठहरता नहीं है 




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