मेरी कैफ़ियत गुज़रती नहीं
ये तबीयत संभलती नहीं
दुआओँ से भी कुछ न हुआ
ये मर्ज़ जिस्मानी नहीं
ख़ैरियत न पूछा करें मेरी आजकल
ये कश्मकश ख़त्म होती नहीं
वक़्त पे छोड़ा था मैंने इलाज
मगर वक़्त भी गुज़रा लौटता नहीं
मसरूफ रहा करती हूँ आजकल
ढूंढने में नए हकीम
सब कुछ आज़मा कर देख लिया
बचने की सूरत दिखती नहीं
मत पूछ बैठना "कैसी हो" मुझसे
मैं इंसां हूँ, खिलौना नहीं!
ये तबीयत संभलती नहीं
दुआओँ से भी कुछ न हुआ
ये मर्ज़ जिस्मानी नहीं
ख़ैरियत न पूछा करें मेरी आजकल
ये कश्मकश ख़त्म होती नहीं
वक़्त पे छोड़ा था मैंने इलाज
मगर वक़्त भी गुज़रा लौटता नहीं
मसरूफ रहा करती हूँ आजकल
ढूंढने में नए हकीम
सब कुछ आज़मा कर देख लिया
बचने की सूरत दिखती नहीं
मत पूछ बैठना "कैसी हो" मुझसे
मैं इंसां हूँ, खिलौना नहीं!