Wednesday, December 30, 2015

इबारतें (6)

इबारतें बेख़ौफ़ हैं
इबादतें बदशक्ल,

मेरे हज की गलियों के नक्श
नाखून से खुरचना चाहा हो किसी ने जैसे

ज़िन्दगी मुझसे ही पलट के सवाल पूछती है
आखिर क्या सोच के किया जो किया,
पन्नों पे लिखाई भी मुश्किल हो रही है
ओस भीगे पत्ते भी कभी जलते हैं भला

इबादतें दिखने लगी हैं अब इबारतों में
बस ज़िन्दगी की हँसी सुनाई देती है


one more EMI of Ibaratein Poetry Series- 10 months in between


इबारतें : Writing
इबादतें: Prayers
नक्श:Map

Wednesday, December 23, 2015

लगता है सालों पुरानी बात है

तस्वीरें है कुछ मेरी तुम्हारी
अभी बस हाल फ़िलहाल की
रोज़ पलटती हूँ, हमें साथ देखने को
मगर,
लगता है सालों पुरानी बात है

लगता है जैसे अरसा गुज़र गया तुम्हें देखे हुए
कही चेहरा भूल जाऊं.. यूँ भी सोच लिया करती हूँ
तुम्हारा इंतज़ार होकर भी नहीं है
इतना लम्हा गुज़र गया तुमसे रूबरू हुए


हर दिन मानो इक साल जैसा है
बस खुद जोड़ लो कितने साल गुज़र गए;
वादे किये थे तुमने बस अभी कुछ दिन पहले
मगर,
लगता है सालों पुरानी बात है