Monday, September 14, 2015

ग़ज़लों जैसा इश्क़

काश के ग़ज़लों जैसा इश्क़ हुआ करता

तुम  मय हुआ करते मैं साकी हुआ करती

सोचती बस तुम्हे,

तुम्हारे लिए ही नज़्में लिखा करती

काश शाइर जैसा  इश्क़ हुआ करता

बस उसी के लिए जीती, उसी पे मरती

तुम गिनते नहीं कितने जाम हुए

मैं बताती नहीं हम क्यों सरेआम हुए

कितना इश्क़ होता सोचो ज़रा

गर ग़ज़लों जैसा इश्क़ हुआ करता

वाकई , इश्क़ होता!

काश के ग़ज़लों जैसा इश्क़ हुआ करता