Wednesday, July 12, 2017

मर्ज़

मेरी कैफ़ियत गुज़रती नहीं
ये तबीयत संभलती नहीं
दुआओँ से भी कुछ न हुआ
ये मर्ज़ जिस्मानी नहीं
ख़ैरियत न पूछा करें मेरी आजकल
ये कश्मकश ख़त्म होती नहीं
वक़्त पे छोड़ा था मैंने इलाज
मगर वक़्त भी गुज़रा लौटता नहीं
मसरूफ रहा करती हूँ आजकल
ढूंढने में नए हकीम
सब कुछ आज़मा कर देख लिया
बचने की सूरत दिखती नहीं
मत पूछ बैठना "कैसी हो" मुझसे
मैं इंसां हूँ, खिलौना नहीं!

खिड़की

Somewhere in Kolad, Maharashtra #kaveeshaklicks
मेरी सामने वाली खिड़की से, रात की ख़ामोशी में
खिलखिलाहटें सुनाई आती हैं
कुछ कोरी चिट्ठियां रहती हैं वहां
जीवन की स्याही से अब तक अनछुई
तभी तो खिलखिलाती हैं
के आवाज़ यहाँ तक आती है
रात की ख़ामोशी में
मेरी खिड़की भी शायद
वहीँ से दिल बहलाती है
खुद तो देखती है हर रोज़
जीवन की स्याही इस ओर फैलते हुए
झेल जाती है हर बार, आक्रोश में जो उसके द्वार पटके गए
कई बार तो पूरी रात गुज़र जाती है,
मेरी खिड़की कहाँ सो पाती है...!
हर रात जैसे ऐसी रात भी गुज़र जाती है
रात की ख़ामोशी, सबकुछ मौन कर जाती है
जब भी थोड़ा सुकून पाती है
मेरी खिड़की सामने वाली खिड़की की तरफ
टकटकी लगाए पाए जाती है
उन कोरी चिट्ठियों से, खुद  पे बिखरी स्याही मिटाती है
मेरी खिड़की, सामने वाली खिड़की से ,
शायद थोड़ा रश्क़ भी खाती है!